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________________ जैन-न्याय को आचार्य अकलंकदेव का अवदान XIX चतुर्थ प्रस्ताव (जीवसिद्धि) - आत्मस्वरूप का विवेचन। पञ्चम प्रस्ताव (जल्प सिद्धि) - जल्प का लक्षण एवं उसकी चतुरंगता आदि। षष्ठ प्रस्ताव (हेतुलक्षण सिद्धि) - हेतु का लक्षण एवं उसके भेद। सप्तम प्रस्ताव (शास्त्रसिद्धि) - जीव की चेतनता, ईश्वरवाद, वेदापौरुषेयत्व आदि पर विचार। अष्टम प्रस्ताव (सर्वज्ञसिद्धि) - सर्वज्ञता की सिद्धि। नवम प्रस्ताव (शब्दसिद्धि) - शब्द की पौद्गलिकता की सिद्धि। दशम प्रस्ताव (अर्थनयसिद्धि) - नैगमादि चार अर्थनय एवं नयाभास। एकादश प्रस्ताव (शब्दनयसिद्धि) - शब्दादि तीन शब्दनयों का वर्णन। द्वादश प्रस्ताव (निक्षेपसिद्धि) - निक्षेप एवं उसके भेदोपभेद। ४. प्रमाणसंग्रह . - अत्यन्त प्रौढ़ शैली में लिखित यह संभवतः अकलंकदेव की अन्तिम कृति है।.क्योंकि इसमें उन्होंने उपर्युक्त तीनों कृतियों के वर्णन से अवशिष्ट विषयों को वर्णित करने का प्रयास किया है। इसमें 87V कारिकायें तथा नौ प्रस्ताव है। प्रस्तावों का वर्ण्यविषय इस प्रकार है • प्रथम प्रस्ताव. - प्रत्यक्ष का लक्षण, प्रत्यक्ष-अनुमान-आगम और उनका ____ फल तथा मुख्य प्रत्यक्ष प्रमाण। 9 कारिकायें। द्वितीय प्रस्ताव . - स्मृति, प्रत्यभिज्ञान एवं तर्क परोक्ष प्रमाण। कुल 9 कारिकायें। तृतीय प्रस्ताव . - अनुमान के अंग, साध्य एवं साधन एवं साधन के लक्षण, सांध्याभास, संशयादि आठ दोष। कुल 10 कारिकायें।
SR No.002233
Book TitleJain Nyaya me Akalankdev ka Avadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamleshkumar Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year1999
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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