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________________ जैन - न्याय को आचार्य अकलंकदेव का अवदान '. प्रत्यक्ष का समीक्षण तथा अतीन्द्रिय प्रत्यक्ष के लक्षण आदि विषयों का वर्णन हुआ है। द्वितीय प्रस्ताव में 2161⁄2 कारिकायें हैं, जिसमें अनुमान का विवचेन है। इसके अन्तर्गत का अनुमान का लक्षण तथा उसकी बाह्यार्थ विषयता, साध्य - साधनाभास का लक्षण, तर्क की प्रमाणता, असिद्धादि हेत्वाभासों का विवेचन, दृष्टान्त-दृष्टान्ताभास का विवेचन, वाद - वादाभास का स्वरूप, निग्रहस्थान आदि अनुमान से सम्बन्धित विविधि विषयों का संग्रह है। तृतीय प्रस्ताव मे 94 कारिकायें है। इस प्रस्ताव में आगमिक विवेचना हुई है। इसके अन्तर्गत प्रवचन का स्वरूप, बुद्ध की आप्तता का निराकरण, उनकी करुणा तथा चार आर्यसत्यों की विवेचना की समीक्षा, आगम के अपौरुषेय होने की असंभवता, सर्वज्ञ की सिद्धि, शब्द की नित्यता का निराकरण, जीवादि तत्त्वों का प्रतिपादन, मोक्ष का स्वरूप, स्याद्वाद के सप्त भंगों की विवेचना, स्याद्वाद सिद्धान्त में दिये जाने वाले संशय आदि दोषों का निरास, स्मरण एवं प्रत्यभिज्ञान की प्रमाणता तथा प्रमाण के फल आदि विषय वर्णित हैं। सभी विषयों के प्रतिपादन में तथा परमतखण्डन में भट्ट अकलंकदेव का तर्कवैदग्ध्य अनूठा है। ३. सिद्धिविनिश्चय xviii भट्ट अकलंदेव द्वारा प्रणीत सिद्धिविनिश्चय में भी प्रमाण, नय और निक्षेप का विवेचन हुआ है। इस पर भी उनकी स्वोपज्ञ वृत्ति है तथा अनंतवीर्य सिद्धिविनिश्चय पर टीका भी लिखी है। सिद्धिविनिश्चय में बारह प्रस्ताव हैं, जिनका विवेच्य विषय इस प्रकार है प्रथम प्रस्ताव (प्रत्यक्ष सिद्धि) द्वितीय प्रस्ताव (सविकल्प सिद्धि) तृतीय प्रस्ताव (प्रमाणातंर सिद्धि ) प्रमाण का लक्षण एवं फल, निर्विकल्प प्रत्यक्ष का निराकरण आदि । अवग्रहादि ज्ञानों में पूर्व पूर्व की प्रमाणता तथा उत्तरोत्तर फल रूपता । स्मरण, प्रत्यभिज्ञान, तर्क की प्रमाणता ।
SR No.002233
Book TitleJain Nyaya me Akalankdev ka Avadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamleshkumar Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year1999
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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