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________________ अकलंकदेवकृत आप्तमीमांसाभाष्य एवं लघीयस्त्र्य के उद्धरणों का अध्ययन 193 इसका स्रोत भी अभी ज्ञात नहीं हो सका है। * कारिका ५३ के भाष्य में अकलंक ने “न तस्य किञ्चिद् भवति न भवत्येव केवलम्” वाक्य उद्धृत किया है।' यह वाक्य प्रमाणवार्तिक की कारिका का उत्तरार्ध भाग है। सम्पूर्ण कारिका इस प्रकार है। न तस्य किञ्चिद् भवति न भवत्येव केवलम् । ___ भावे ह्येष विकल्पः स्याद् विधेर्वस्त्वनुरोधतः ।। कारिका ७६ में “युक्त्या यन्न घटामुपैति तदहं दृष्ट्वाऽपि न श्रद्दधे” वाक्य उद्धृत किया है। इसका मूलस्रोत ज्ञात नहीं हो सका है। कारिका ८० की वृत्ति में “संहोपलम्भनियमादभेदो नीलतद्धियोः वाक्य उद्धृत हैं जो प्रमाणविनिश्चय से लिया गया है। 'कारिका ८६ के भाष्य में “तदुक्तम्” करके निम्न कारिका उद्धृत की है-६ ___ तादृशी जायते बुद्धिर्व्यवसायश्च तादृशः। सहायास्तादृशाः सन्ति यादृशी भवितव्यता।। यह कारिका कहां से ग्रहण की गई है। इसका निर्देश स्थल अभी ज्ञात नहीं हो सका है। कारिका संख्या १०१ के भाष्य में “तथा चोक्तम्” करके “सर्वद्रव्यपर्यायेषु केवलस्य"८- सूत्र उद्धृत किया गया हैं एवं कारिका संख्या १०५ के भाष्य में “मतिश्रुतयोर्निबन्धो द्रव्येष्वसर्वपर्यायेषु" यह सूत्र उद्धृत किया है। . . . ये दोनों सूत्र तत्त्वार्थसूत्र से लिये गये हैं। कारिका १०६ के भाष्य में अकलंक ने निम्न वाक्य उद्धृत किया है-१० १. वही, कारिका ५३ भाष्य २. प्रमाणवार्तिकम् सटीकम्-धर्मकीर्ति, सम्पादक-द्वारिकादास शास्त्री, बौद्ध भारती, वाराणसी, ईस्वी १६६८ ३. आप्तमीमांसाभाष्य, कारिका ७६ ४. वही, कारिका ८० . ५. न्यायकुमुदचन्द्र, भाग १ प्रस्तावना, पृष्ठ ४६, सम्पादक- पं० महेन्द्र कुमार शास्त्री ६. आप्तमीमांसाभाष्य कारिका ८६ ७. यह कारिका चाणक्यनीति से संग्रहीत है। सम्पादक ६.. तत्त्वार्थसूत्र १/२६, तत्त्वार्थवार्तिक, भाग १ के अन्तर्गत, सम्पादक- महेन्द्र कुमार शास्त्री, भारतीय ज्ञानपीठ, ईस्वी १९८६ ६. वही १/२६ १० आप्तमीमांसाभाष्य, कारिका १०६
SR No.002233
Book TitleJain Nyaya me Akalankdev ka Avadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamleshkumar Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year1999
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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