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जैन-न्याय को आचार्य अकलंकदेव का अवदान
से है।
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अस्तित्व से है अर्थात् वस्तु की विभिन्न अवस्थायें ही अनित्य हैं, क्षणिक हैं। वस्तु तो त्रिकालवर्ति होने के कारण नित्य है। सर्वास्तिवादियों ने रूप परमाणु को नित्य मानकर उसी में पृथ्वी, अप, तेज और वायु रूप होने की शक्ति मानी है। सर्वास्तिवाद का यह परमाणु समुदायवाद सांख्यों के प्रकृति-परिणामवाद से जैनों के द्रव्यपर्यायवाद से और मीमांसकों के अवस्था-अवस्थातावाद से जितना अधिक समीप है, उतना ही अधिक दूर वह योगाचार के क्षणिकैकान्तवाद से है।
आचार्य अश्वघोष ने इस सिद्धान्त को भूततथतावाद के रूप में प्रस्थापित किया है। तदनुसार इस सिद्धान्त के दो रूप हैं- पारमार्थिक और सांवृतिक-व्यावहारिक। पारमार्थिक भूततथता विश्व का परमतत्त्व है और व्यावहारिक भूततथता संसार अर्थात् जन्म-मृत्यु के रूप में। जैनदर्शन की दृष्टि से नैश्चयिक आत्मा की तुलना पारमार्थिक भूततथता के साथ की जा सकती है। आचार्य कुंदकुंद ने इसे सत् कहा है। अन्तर यह है कि जैनों ने नैश्चयिक आत्मा को एक मात्र परमतत्त्व नहीं माना है। उसके अतिरिक्त एक अजीवत्त्व भी है।
भूततथता के व्यावहारिक रूप के तीन रूप हैं- द्रव्य, गुण और क्रिया। गुण और क्रिया (भाव और पर्याय) उत्पत्ति और विनाश को प्राप्त होते हैं, किन्तु द्रव्य ध्रुवभावी है। यह रूप जैनों के व्यावहारिक आत्मा के रूप से तथा सांख्यों के प्रपञ्च से मिलता-जुलता है। भूततथतावाद का परमतत्त्व सांख्यों की प्रकृति के समान और जैनों के सामान्य द्रव्य के समान नित्य है।
जैनदर्शनों में प्रमेय दो हैं- प्रत्यक्ष और परोक्ष। अतः प्रमाण भी दो हैं- प्रत्यक्ष और परोक्ष । बौद्धदर्शन दो तत्त्वों को मानता है-एक स्वलक्षण और दूसरा सामान्य लक्षण। स्वलक्षण प्रत्यक्ष का विषय है और सामान्य लक्षण अनुमान का विषय है। वस्तु का असाधारण तत्त्व अथवा परमार्थ सत् स्वलक्षण है तथा सामान्य काल्पनिक है, परतन्त्र है। सामान्य की स्वतंत्र सत्ता न होने से वस्तुतः प्रमेय एक ही है और वह स्वलक्षण ही है। उसी से अर्थक्रिया की सिद्धि होती है। विज्ञानवाद में सभी पदार्थ स्वभावतः स्वतन्त्रतः सत् हैं, स्वलक्षणात्मक है। यद्यपि विज्ञान तथा वासना के बिना पदार्थों की सत्ता हो नहीं सकती, तथापि उससे पदार्थों की स्वलक्षण सत्ता में कोई बाधा नहीं पहुंचती इसलिए विज्ञानवादी यह कभी नहीं कहते कि सभी पदार्थ कल्पित हैं। १. देखिये-महाकवि का शुद्धोत्पादशास्त्र जिसका अंग्रेजी अनुवाद "Awakening of Faith" के नाम से परमार्थ और
शिक्षानन्द के चीनी अनुवाद के आधार पर प्रो. सुजुकी ने किया है। मूल संस्कृत ग्रन्थ अप्राप्य है . २. वही, पृ० २५४ ३. प्रमाणवार्तिक, २/५१-५४