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'तत्त्वार्थवार्तिक' में प्रतिपादित मानवीय मूल्य
डॉ० सुरेन्द्रकुमार जैन 'भारती'*
आचार्य विनोबा भावे का कथन है कि 'पुराने शब्दों पर नये अर्थों की कलम लगाना ही विचार क्रान्ति की सर्वश्रेष्ठ प्रणाली है।' जैनन्याय-विद्या के अप्रतिम आचार्य भट्ट अकलंकदेव ने आचार्य श्री उमास्वामी द्वारा विरचित 'तत्त्वार्थसूत्र' ग्रन्थ पर 'तत्त्वार्थवार्तिक' लिखकर मूल ग्रन्थ के भाव एवं अर्थ को जनग्राह्य बनाने की दिशा में अपना उल्लेखनीय योगदान दिया है। इसे विनोबा भावे के कथनानुसार विचारक्रान्ति की सर्वश्रेष्ठ प्रणाली कहा और माना जाना चाहिए।
'मानवीय मूल्य'. 'तत्त्वार्थवार्तिक' में खोजे जायें इसके पूर्व यह जान लेना आवश्यक है कि मानवीय अर्थात् 'मानव सम्बन्धी मूल्य अर्थात् रचना के भीतर वर्तमान रहने वाला ऐसा उद्देश्य जो उसे किसी सामाजिक आदर्श, व्यक्तिगत उच्चता आदि से जोड़े'; 'मानवीय मूल्य' कहलाता है। “मानवीय संवदेना हर हालत में नैतिक बोध (अर्थात् मानव मूल्य) से जुड़ी रहती है, भले ही साधारण व्यक्ति को इसका ज्ञान न हो; परन्तु साहित्यकार की संवेदना अपेक्षाकृत अधिक सूक्ष्म होती है; क्योंकि उसमें 'सचेतन नैतिक बोध रहता है। साहित्यकारों के लिए मनुष्य और उसके हावभाव गुण सदैव अध्ययन के विषय रहे हैं। वैसे भी साहित्य मनुष्य का ही कृतित्व है और मानवीय चेतना के बहुविध प्रत्युत्तरों (Responses) में से एक महत्त्वपूर्ण प्रत्युत्तर है। अतः मानवीय मूल्यों से साहित्य का बच पाना असंभव ही होता है। - पाश्चात्य विचारक आस्कर वाइल्ड भले ही नैतिक मूल्यानुराग को लेखक की शैली का अक्षम्य आडम्बर माने, किन्तु भारतीय और विशेषकर आध्यात्मिक लेखकों के लिए नैतिक मूल्यानुराग छोड़ पाना सरल नहीं है। ... श्री भट्ट अकलंकदेव की दृष्टि में “सारे प्रयत्न सुख के लिए हैं 'सर्वेषां प्राणिनां परिस्पन्दः सुखप्राप्त्यर्थः५ किन्तु प्रश्न यह उठता है कि किसके सुख के लिए?
• वरिष्ठ सहायक प्राध्यापक, हिन्दी विभाग, सेवा सदन महाविद्यालय, बुरहानपुर (म०प्र०) ..१.. वृहद हिन्दी कोश, पृ० १५८
२. वही, पृ० ६१२ · ३. हिन्दी कविता, संवेदना और दृष्टिः राम मनोहत त्रिपाठी, पृ० ५०
४. मानवमूल्य और साहित्यः धर्मवीर भारती, भूमिका-२ ५. तत्तवार्थवार्तिक, ५/२०/५