________________
लघीयस्त्र्य और उसका दार्शनिक वैशिष्ट्य
इस प्रकार आचार्य अकलंकदेव ने अपने लघीयस्त्रय में विभिन्न दार्शनिक मतों की समीक्षा की है तथा आगमिक-परम्परा को सुरक्षित रखते हुए अपने तर्कों के माध्यम से जैन न्यायशास्त्र की ऐसी प्रतिष्ठा की है, जो आज भी विद्वानों के लिए मार्गदर्शक है।
“जय अकलंकदेव”