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________________ 118 जैन-न्याय को आचार्य अकलंकदेव का अवदान नामादि रूप उपाय निक्षेप है। ज्ञाता का अभिप्राय नय है और युक्ति अर्थात् प्रमाण, नय, निक्षेप के द्वारा ही पदार्थों का ग्रहण होता है ज्ञानं प्रमाणमात्मादेरुपायो न्यास इष्यते। नयो ज्ञातुरभिप्रायो युक्तितोऽर्थपरिग्रहः।।' नैयायिकों ने इन्द्रिय और अर्थ के सन्निकर्ष को ही ज्ञान की उत्पत्ति में साधकतम माना है, किन्तु अकलंकदेव का कहना है कि- इन्द्रिय और अर्थ. के सन्निकर्ष आदि के होते हुए भी जब तक ज्ञान उत्पन्न नहीं होता है तब तक सन्निकर्ष की, सन्निकर्ष और ज्ञान के अन्वय-व्यतिरेक की तथा इन्द्रिय और सन्निकर्ष एवं सन्निकर्ष और ज्ञान के कार्यकारणभाव की व्यवस्था नहीं हो सकती है। अतः साधकतम. होने से ज्ञान ही प्रमाण है। यहाँ ज्ञान की उत्पत्ति का नियामक कर्मावरण कां क्षयोपशम . कहा गया है। उनके अनुसार श्रुत के स्याद्वाद और नय- ये दो उपयोग अथवा व्यापार होते हैं। स्याद्वाद सकलादेशी है अर्थात् अनेकधर्मात्मक वस्तु का सर्वदेश कथन करता . है और नय विकलादेशी है, यह वस्तु का एक देश कथन करता है उपयोगी श्रुतस्य द्वौ स्याद्वादनयसंज्ञितौ।' स्याद्वादः सकलादेशे नयो विकलसकथा।। आचार्य अकलंकदेव ने स्याद्वाद पद में प्रयुक्त 'स्यात्' पद का प्रयोग न करने पर भी कुशल वक्ता के द्वारा प्रयुक्त वाक्य में 'स्यात्' पद एवं ‘एवकार' पद की प्रतीति स्वतः मानी है। वे लिखते हैं अप्रयुक्तोऽपि सर्वत्र स्यात्कारोऽर्थात् प्रतीयते। विधौ निषेधेऽप्यन्यत्र कुशलश्चेत् प्रयोजकः।। इस प्रकार आचार्य अकलंकदेव ने नयों के संग्रह में भी पूर्व आगमिक-परम्परा का समर्थन करते हुए सप्त नयों का उल्लेख किया है। उनमें से जीव-अजीव आदि में अर्थों का आलम्बन लेने से प्रारम्भिक चार अर्थनय हैं और सत्यभूत काल, कारक, लिङ्ग आदि भेद के वाचक पदविद्या अर्थात् व्याकरणशास्त्र का आलम्बन लेने से शेष तीन नय शब्दनय हैं। १. लघीयस्त्रय, कारिका ५२ २. लघीयस्त्रय, कारिका ५५ ३. लघीयस्त्रय, कारिका ५७ ४. लघीयस्त्रय, कारिका ६२ ५. लघीयस्त्रय, कारिका ६३ ६. चत्वारोऽर्थनया येते जीवाद्यर्थव्यपश्रयात् त्रयः शब्दनयाः सत्यपदविद्यां समाश्रिताः।। - लघीयस्त्रय, कारिका ७२
SR No.002233
Book TitleJain Nyaya me Akalankdev ka Avadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamleshkumar Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year1999
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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