________________
अकलंक और जीव की परिभाषा
101
___ संसारी जीव (- कर्म) = आत्मा ----> अनंत सुख (मोक्ष) . . दुखमयता की धारणा ने हमें यथास्थितिवादी बनाये रखा है। यही कारण है कि हम संसार को सदैव दुःखमय बनाकर रखे हुए हैं और व्यक्तिवादिता का पल्लवन कर रहे हैं। न्यायाचार्य ने टीक ही कहा है कि हम संसार की ४ गतियों में से मनुष्य और पशु गति को तो प्रत्यक्ष ही देखते हैं। इनकी निंदा भी करते हैं। पर, फिर भी उन्हीं में पुनः उत्पन्न होना चाहते हैं। यह कितने आश्चर्य की बात है? प्रारम्भिक परिभाषा के विविध रूप :
जैनाचार्यों ने संसारी जीवों की इस सामान्य बुद्धि पर सूक्ष्मता से विचार किया और अनेकांत-प्रतिष्ठापन युग में द्रव्य-भाव, व्यवहार-निश्चय, अंतरबार, आत्मभूत-अनात्मभूत आदि की धारणाएं प्रस्तुत कर बताया कि प्रत्येक वस्तु के अनेक रूप होते हैं। उसका स्वरूप सापेक्ष दृष्टि से ही जाना जा सकता है। संपूर्ण स्वरूप तो सर्वज्ञ ही जानता है, पर भाषा की सीमाओं के कारण वह भी कह नहीं सकता, वह अवक्तव्य ही होता है इसलिए जीव की परिभाषाएँ अनेक रूप और शब्दावली में पाई जाती हैं। इस आधार पर जीव और आत्मा सह-संबंधित हो गए हैं। जीव को आत्मा की एक दशा मान लिया गया। जब जीव को देहबद्ध रूप में माना जाता है, तब उसकी परिभाषा ऐसी होती है जो आत्मा पर लागू नहीं भी हो। जब उसे देहमुक्त रूप में माना जाता है तब वह आत्मा हो जाता है और परिभाषा अधिक मूलभूत हो जाती हैं। अनेक आचार्य एक ही वस्तु की भिन्न-भिन्न परिभाषाओं का विभ्रमण मानते है और वे जीव और आत्मा की परिभाषाओं को मिश्रित रूप में प्रस्तुत करते हैं, जिनमें मूर्त
और अमूर्त या द्रव्य और भाव दोनों प्रकार के लक्षण समाहित होते हैं। जैन लक्षणावली में जैनशास्त्रों में जीव की परिभाषा के ५२ सन्दर्भ दिये हैं। ....जीव की परिभाषा के सन्दर्भ में यह सचमुच आश्चर्य की बात है कि शास्त्रों में जीवों के संबंध में विवरण तो पर्याप्त हैं, पर्यायवाची भी अनेक बताए गए हैं, पर इसकी परिभाषा कुछ ही ग्रन्थों में पाई जाती है। हाँ, अनेक उत्तरवर्ती टीकाकारों ने अवश्य इसे आत्मवादी भाषा में परिभाषित किया है।
___ भगवती और प्रज्ञापना के समान ग्रन्थों में जीव के पर्याय या विशेष स्वरूप बंताये गए हैं। उन्हें क्षण समकक्षता दी जा सकती है। संक्षेप में जीव के ५ प्रकार के रूप पाए जाते हैं:
भगवती
प्रज्ञापना अ/ब १. शरीर या भौतिक रूप नारकीय, कर्म, शरीर शरीर, अवगाहन, योनि,
रूप