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आचार्य अकलंक की प्रमाण-मीमांसा व सत्यता की कसौटी
ज्ञान में विधेयं को उददेश्य में कछ नई बातें जोडनी चाहिए। जिस परामर्श में विधेय उद्देश्य में कुछ बातें जोड़ता है, उस परामर्श को संश्लेषणात्मक परामर्श कहते हैं। ___अतः स्पष्ट है कि यदि सत्यता की कसौटी अबाध का नियम मान लिया जाये तो ज्ञान सिर्फ विश्लेषणात्मक परामर्शों तक सीमित रह जायेगा और सम्पूर्ण ज्ञान संदेहयुक्त हो जायेगा। पाश्चात्य-दर्शन में डेविड ह्यूम ने इसी प्रकार मात्र अबाधनियम को सत्य की कसौटी मानकर सम्पूर्ण ज्ञान को संदेहयुक्त सिद्ध किया था। ह्यूम के पश्चात्वर्ती जर्मन दार्शनिक इमैन्युअल कांट ने ह्यूम के मत का तर्कपूर्ण खंडन कर दिया था। कांट ने दिखाया कि संश्लेषणात्मक परामर्शों की सत्यता पर संदेह नहीं किया जा सकता है। ज्ञान सिर्फ यह नहीं है कि 'चौकोर गोल नहीं है', वरन् इस ज्ञान की सत्यता में किंचित् संदेह नहीं किया जा सकता कि अमुक मेज एक विशिष्ट आकार और विशिष्ट रंग की है। .. यदि संगति और अबाधिता को ज्ञान की सत्यता की कसौटी माना जाये तो जिस प्रकार सत्य-ज्ञानों में सामंजस्य स्थापित किया जाता है, उसी प्रकार असत्य ज्ञानों में सामंजस्य स्थापित करके असत्य-ज्ञानों का समूह बना लेना असम्भव नहीं होगा। तात्पर्य यह है कि संगति और अबाधिता को सत्य की कसौटी मानने पर सत्य और भ्रमपूर्ण ज्ञानों में अंतर नहीं किया जा सकता है, क्योंकि भ्रमपूर्ण ज्ञानों में भी संगति स्थापित की जा सकती है। . माणिक्यनन्दि द्वारा बताये गये प्रमाण के लक्षण का विश्लेषण करने पर सत्यता की एक अन्य कसौटी सामने आती है- अर्थक्रियावादी कसौटी। इस कसौटी के अनुसार कोई ज्ञान तभी सत्य कहा जा सकता है जब मानव-व्यवहार द्वारा निरीक्षण-परीक्षण द्वारा उस ज्ञान को परख लिया जाये। डिवी के अनुसार सत्य का केवल एक अर्थ हैपरीक्षित। अर्थक्रियावादी विलियम जेम्स के अनुसार केवल उन्हीं प्रत्ययों को सत्य कहा जा सकता है, जो प्रयोग द्वारा प्रमाणित किये जा सकते हैं। इससे स्पष्ट है कि ज्ञान अनुभवाश्रित परीक्षण के पश्चात् ही सत्य सिद्ध होता है। - इस सिद्धान्त में भी कई कठिनाइयां हैं। सर्वप्रथम तो सत्य का निर्णय सदैव परीक्षण नहीं होता, दूसरे उपयोगिता की अनुभूति में भ्रम हो सकता है। इसके अतिरिक्त यह आवश्यक नहीं है कि जो उपयोगी है वह यथार्थ है। कभी किसी परिस्थिति में झूठ बोलना उपयोगी हो सकता है, किन्तु इस उपयोगिता से उस झूठ की यथार्थता सिद्ध नहीं की जा सकती। उपयोगिता और सत्यता में अनिवार्य संबंध
नहीं है।