________________
जैन-न्याय को आचार्य अकलंकदेव का अवदान
ही, वैविध्यपूर्ण भी हैं। इन शोधपत्रों के माध्यम से आचार्य अकलंकदेव के ऐतिहासिक व्यक्तित्व एंव कृतित्व को उजागर करने का सफल प्रयास किया गया है। कुछ विद्वानों द्वारा अपने विचार मौखिक रूप में प्रस्तुत किये गये थे और कुछ के लेख प्राप्त नहीं हो सके हैं. अतः उनका यहाँ समावेश नहीं किया जा सका है।
- जैन-न्यायविद्या की परम्परा को विकसित करने में आंचार्य अकलंकदेव के पूर्ववर्ती एवं परवर्ती अन्य अनेक आचार्यों का भी महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। अतः उनके संक्षिप्त परिचयों को गर्भित करने की दृष्टि से सिद्धान्ताचार्य पं० कैलाशचन्द्र शास्त्री के लेख 'प्राचीन जैनाचार्य और उनका दार्शनिक साहित्य' को भी अभिनन्दन ग्रन्थ से उद्धृत किया गया है। इसी प्रकार उपयोगिता की दृष्टि से डॉ० वच्छराज दूगड़ (लाडनूं) के ‘आचार्य अकलंक की प्रमाण मीमांसा व सत्यता की कसौटी'. तथा डॉ० . कमलेश कुमार जैन (दिल्ली) के ‘अकलंकदेवकृत आप्तमीमांसा भाष्य एवं लघीयस्त्रंथ के उद्धरणों का अध्ययन' नामक लेखों का भी संकलनं किया गया है। इस प्रकार यह संगोष्ठी स्मारिका स्वतः ही महत्त्वपूर्ण एवं शोधोपयोगी बन गई है। . संगोष्ठी के सफल आयोजन में जैनदर्शन के युवा विद्वान डॉ० जयकुमार जैन (मुजफ्फरनगर) एवं डॉ० अशोककुमार जैन (लाडनूं) की भूमिका निस्संदेह महत्त्वपूर्ण रही है, अतः इन दोनों विद्वानों का मैं हृदय से आभारी हूँ।
___ इस कार्य को सम्पन्न करने में मुझे जैन और बौद्ध न्यायविद्या के प्रखर मनीषी श्रद्धेय प्रो० उदयचन्द्र जी जैन सर्वदर्शनाचार्य (वाराणसी) द्वारा अनेक उपयोगी सुझाव प्राप्त हुये हैं। अतः मैं उनके प्रति तंहेदिल से आभार प्रकट करता हूँ।
अन्त में उन पूज्य उपाध्यायश्री के चरणों में त्रिबार नमोऽस्तु निवेदन करता हूँ, जिनके मगंल आशीर्वाद से यह कार्य सहज ही सम्पन्न हो सका है। .
डा० कमलेश कुमार जैन
जैनदर्शन प्राध्यापक काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी