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सम्पादकीय
परम पूज्य १०८ उपाध्यायश्री ज्ञानसागरजी महाराज एवं १०८ मुनिश्री वैराग्यसागरजी महाराज अपने ज्ञान एवं वैराग्य के कारण जन-जन की श्रद्धा के पात्र हैं। साथ ही जैनविद्या एवं उसके उपासक विद्वानों के प्रति भी उनका प्रगाढ़ अनुराग है।
पूज्य उपाध्यायश्री ने जहाँ सराकोद्धार के लिये बिहार प्रान्त के तड़ाई जैसे अविकसित एवं पहाड़ी क्षेत्र में चातुर्मास सम्पन्न कर सदियों से बिछुड़े सराक बन्धुओं को गले लगाया है। वहीं उन्होंने विद्वानों के संरक्षण के लिए भी अनेक लोकोपयोगी कार्य किये हैं। न्यायाचार्य पं० महेन्द्रकुमार जैन के स्मृति-ग्रन्थ का प्रकाशन पूज्य उपाध्यायश्री के मंगल-आशीर्वाद का ही फल है।
पूज्य उपाध्यायश्री ने प्राचीन जैनाचार्यों की कृतियों को प्रकाश में लाने एवं उन पर अनेक जैन और जैनेतर विद्वानों द्वारा ऐतिहासिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और समालोचनात्मक अध्ययन प्रस्तुत करने हेतु विविध संगोष्ठियों में अपनी गरिमामयी उपस्थिति प्रदान की है तथा अपना मगंलमयी उद्बोधन देकर सभी को कृतार्थ किया है। . पूज्य उपाध्यायश्री की सात्विक प्रेरणा से २५-२६ मार्च ६० को सरधना में आचार्य कुन्दकुन्द पर १३-१४ फरवरी ६५ को मेरठ में आचार्य समन्तभद्र पर ११, १२, . १३. फरवरी ६६ को दिल्ली में सराकोद्धार पर औश्र २७, २८, २६ अक्टू० ६६ को
शाहपुर (मुजफ्फरनगर) में आचार्य अकलंकदेव पर आयोजित अखिल भारतीय विद्वत् संगोष्टि में देश के कोने-कोने से पधारे उच्चकोटि के अनेक विद्वानों ने विविध विषयों पर शोधपत्रों का वाचन कर अपना महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है।
- पूज्य उपाध्यायश्री के शुभाशीर्वाद एवं विद्वानों की लगन के कारण अब तक प्रथम तीन संगोष्ठियों में प्रस्तुत किये गये शोधपत्रों को जैनविद्या के प्रखर मनीषी डॉ० दरबारीलाल कोठिया न्यायाचार्य, प्राचार्य नरेन्द्रप्रकाश जैन, डॉ० जयकुमार जैन एवं डॉ० नीलम जैन के द्वारा सुसम्पादित होकर प्रकाशित किये जा चुके हैं। सम्प्रति शाहपुर (मुजफ्फरनगर) में २७, २८ एवं २६ अक्टूबर १६६६ को आयोजित 'जैन- न्याय को आचार्य अकलंकदेव का अवदान' विषयक संगोष्ठी में पठित शोधपत्रों को सम्पादित कर प्रकाशित किया जा रहा है।
इस संगोष्ठी में कुल बीस शोधपत्रों का वाचन किया गया था, जो स्तरीय तो हैं