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जैन-न्याय को आचार्य अकलंकदेव का अवदान
अमरकोश में उल्लेख है -
प्रमाणमकलङ्कस्य पूज्यपादस्य लक्षणम्। द्विसंधानकवेः काव्यं रत्नत्रयमपश्चिमम्॥
ऐसे महान् आचार्य के प्रति अपनी श्रद्धा को व्यक्त करने के लिये ही सराकजाति के उद्धारक परमपूज्य उपाध्यायश्री 108 ज्ञानसागर जी महाराज व परमपूज्य 108 श्री वैराग्यसागर जी महाराज ने शाहपुर (मुजफ्फनगर),. 1996 में विद्वज्जनों को आमन्त्रित किया, जिन्होंने अपनी श्रद्धाभिव्यक्ति के लिये शोध पत्र रूपी पुष्प अर्पण किये। उन्हीं पुष्पों की सुरभि को धर्म प्रेमियों तक पहुँचाने का उत्तरदायित्व प्राच्य श्रमण भारती (मुजफ्फनगर) को सौंपा गया। इसी लिये इन सभी शोध-पुष्पों को गूंथकर आपके समक्ष प्रस्तुत किया जा रहा है। इस हेतु हम सभी परमपूज्य मुनिद्वय, विद्वानों व अन्य सभी सहयोगीजनों का आभार व्यक्त करते हैं तथा भविष्य में भी हार्दिक सहयोग व आर्शीर्वाद की अपेक्षा करते हैं।
मन्त्री रंवीन्द्र कुमार जैन प्राच्य श्रमण भारती
मु० नगर