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जैन-न्याय को आचार्य अकलंकदेव का अवदान
प्रमाण
परोक्ष
प्रत्यक्ष सांव्यवहारिक
मुख्य
अवग्रह ईहा अवाय धारणा अवधि मनःपर्यय केवल .
इस प्रकार सभी ने प्रत्यक्ष के मुख्य और सांव्यवहारिक-ये दो भेद करके मुख्य में अवधि, मनःपर्यय और केवलज्ञान- इन तीन को लिया है तथा सांव्यवहारिक में मतिज्ञान को ग्रहण किया है। .
प्रत्यक्ष प्रमाण के उक्त वर्गीकरण से स्पष्ट है कि जैसे अन्य दर्शनों में अलौकिक प्रत्यक्ष के भी परिचित्तज्ञान, तारक, कैवल्य (मुक्त) युंजान आदि रूप से भेद पाये जाते हैं, उसी प्रकार जैनदर्शन में भी विकल-सकल अवधि। मनःपर्यय केवलज्ञान रूप से मुख्य प्रत्यक्ष के भेद वर्णित किए गए हैं। . .
आचार्य अकलंक द्वारा न्यायविनिश्चय के प्रथम परिच्छेद में लिखित बौद्धदर्शन सम्मत इन्द्रिय प्रत्यक्ष, मानस प्रत्यक्ष, स्वसंवेदन प्रत्यक्ष के निराकरण के साथ ही सांख्य और नैयायिक सम्मत प्रत्यक्ष लक्षण कर निरसन भी न्यायविद्या के क्षेत्र अप्रतिम अवदान है।