________________
अनेकान्त के प्रतिष्ठापक आचार्य अकलंकदेव
परस्पर पृथक्-पृथक् हैं, इसलिए मिट्टी रूप द्रव्य की अपेक्षा द्रव्यार्थिक नय से घट, सिकोरादि में कथंचित् एकत्व है और पर्यायार्थिक नय की अपेक्षा पृथक्त्व है, क्योंकि मिट्टी का ही परिणमन होने से इनमें एकत्व है। उभयकारणों के फलस्वरूप प्राप्त हुई घट, कपालादि पर्याय मिट्टी रूप ही है, मिट्टी अन्य नहीं है और घटादि पर्याय भी अन्य नहीं है क्योंकि मिट्टी द्रव्य को छोड़कर घटादि पर्याय उपलब्ध नहीं हैं। पर्याय और पर्यायी में भेद रूप कथन किया जाये तो दोनों में भिन्नता है, क्योंकि पर्यायी मिट्टी द्रव्य है और घटादि पर्याय हैं।' ____ आत्मा का ज्ञान से भिन्नाभिन्नत्व- आत्मा और ज्ञानादि में कथञ्चित् भिन्नता है और कथंचित् अभिन्नता है, क्योंकि द्रव्यार्थिक नय की मुख्यता एवं पर्यायार्थिक नय की गौणता- पर्याय की अविवक्षा तथा अनादि परिणाम चैतन्य स्वभावरूप जीव द्रव्य की विवक्षा से कथन किया जाए तो ज्ञानादि गुणों में और आत्मा में एकत्व है, क्योंकि ज्ञानादि गुण अनादि परिणामिक चैतन्य स्वरूप जीव द्रव्य को नहीं छोड़ते हैं। यदि उनमें ही द्रव्यार्थिक नय की गौणता, पर्यायार्थिक नय की प्रधानता, द्रव्य की अविवक्षा तथा कारण विशेष से आपादित भेद पर्यायार्थिक नय की विवक्षा से कथन किया जाए तो ज्ञानादि गुण आत्मद्रव्य से कथंचित् भिन्न हैं, क्योंकि ज्ञान पर्याय अन्य है, और दर्शन पर्याय अन्य है। इसलिए आत्मा से ज्ञानादि पर्याय कथंचित् भिन्न हैं और कथंचित् अभिन्न है। आत्मा और ज्ञान पृथक्-पृथक् नहीं है क्योंकि आत्मा द्रव्य को छोड़कर अन्यत्र ज्ञानादि पर्यायों का अभाव है। पर्याय और पर्यायी की भेद विवक्षा से कथन करने पर दोनों भिन्न हैं और द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव की अपेक्षा अभिन्न हैं। आत्मा पर्यायी है और ज्ञानादि पर्याय हैं। इसलिए आत्मा और ज्ञान के भेदाभेद के प्रति अनेकान्त दृष्टि का प्रयोग करना चाहिए। .. आत्मा की मूर्तामूर्तिकता- आत्मा के मूर्तिक-अमूर्तिक के प्रति अनेकान्त है। कथंचित् आत्मा मूर्तिक है और कथंचित् अमूर्तिक है। कर्मबन्ध पर्याय के प्रति एकत्व होने से आत्मा के कथंकित् मूर्तिक हैं तथापि अपने ज्ञानादि स्थल क्षण के नहीं छोड़ने के कारण कथंचित् अमूर्तिक है। ... आत्मा की एकानेकात्मकता- जीव एक भी अनेकात्मक है अर्थात् जीव एक स्वरूप, अनेक स्वरूप, दोनों प्रकार हैं। यहां प्रश्न है कि जो एक है वह अनेक धर्मात्मक कैसे हो सकता है? इसका उत्तर देते हुए कहा है वह अभाव से विलक्षण होने से १. वही, पृ० २० २. वही, पृ०२१