SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 101
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन-न्याय को आचार्य अकलंकदेव का अवदान • यह श्लोक प्रसिद्ध वैयाकरण भर्तृहरि के वाक्यपदीय ग्रन्थ से उद्धृत है। .. अध्याय १, सूत्र २० की व्याख्या मेंप्रत्यक्षपूर्वकं त्रिविधमनुमानं पूर्ववत् शेषवत् सामान्यतो दृष्टं च। १/१/५ यह सूत्र न्यायसूत्र से उद्धृत है। संयोगाभावे गुरुत्वात् पतनम्। ५/१/६ यह सूत्र वैशेषिकसूत्र से उद्धृत है। अध्याय १, सूत्र २२ की व्याख्या में इन्द्रियाणि पराण्याहुरिन्द्रियेभ्यः परं मनः। मनसस्तु पराबुद्धि बुद्धेः परतरो हि सः ।। ३/४२ यह श्लोक भगवद्गीता से उद्धृत है। अध्याय २, सूत्र २० की व्याख्या में रूपरसगन्धस्पर्शवती पृथिवी। रूपरसस्पर्शवत्य आपो द्रवाः स्निग्धाश्च। तेजो रूपस्पर्शवत्। वायुः स्पर्शवान्।- २/१/४ . यह सूत्र वैशेषिकसूत्र से उद्धृत है। इसके अतिरिक्त पूज्यपाद के जैनेन्द्रव्याकरण से भी अनेक सूत्र उद्धृत किये गये हैं। उपर्युक्त के अतिरिक्त आचार्य अकलंकदेव ने अपने ग्रन्थों में अन्य दर्शनों के और भी अनेक विषयों की चर्चा की है जिनका इस निबन्ध में उल्लेख नहीं किया जा सका है। फिर भी कुछ के नाम इस प्रकार हैं- . बौद्ध विषय : स्वलक्षण और सामान्यलक्षण, स्वलक्षण में अनभिलाप्यत्व और अनिर्देश्यत्व, परमार्थसत् और संवृतिसत्, शून्यवाद, निरन्वयक्षणिकवाद, क्षणिक में ही अर्थक्रियाकारित्व, शब्द और अर्थ में सम्बन्धाभाव, शब्दों में वक्त्रभिप्रायसूचकत्व और अन्यापोहवाचकत्व शब्द के द्वारा अर्थ में संकेत की अशक्यता, अतीतकारणवाद और भाविकारणवाद अर्थात् काल के व्यवधान में भी कार्यकारणभाव की मान्यता, धर्मकीर्तिसम्मत बुद्ध की धर्मज्ञता, चार आर्यसत्य, प्रदीपनिर्वाणवत् निर्वाण का अभ्युपगम आदि। अन्य विषय : वैयाकरणों के द्वारा अभिमत स्फोटवाद और शब्दाद्वैतवाद, वैशेषिकाभिमत नित्य, एक और व्यापक सामान्यवाद, मीमांसकों का परोक्षज्ञानवाद, नैयायिकों का ज्ञानान्तरज्ञानवेद्यवाद, सांख्यों का अचेतनज्ञानवाद, नैयायिक आदि के द्वारा अभिमत
SR No.002233
Book TitleJain Nyaya me Akalankdev ka Avadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamleshkumar Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year1999
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy