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________________ भगवान ने चारु आदि गणधरों को उत्पाद व्यय और स्थित इस त्रिपदी का उपदेश दिया। इस त्रिपदी का अनुसरण करके १०२ गणधरों ने चौदह पूर्व सहित द्वादशांगी की रचना की। उसके बाद प्रभु ने उन पर वासक्षेप डाला। संभवनाथ प्रभु के शासन का अधिष्ठाता देवता त्रिमुख और देवी दुरितारी थे। देवता के तीन मुंह, तीन नेत्र और छः हाथ थे। उसका वर्ण श्याम था। उसका वाहन मयूर था। देवी चारभुजा वाली थी। उसका वर्ण गोरा था और सवारी उसके मेष की थी। प्रभु के परविार में १०२ गणधर, दो लाख साधु, तीन लाख छत्तीस हजार साध्वियां, दो हजार एक सौ पचास चौदह पूर्व धारी, नौ हजार छः सौ अवधि ज्ञानी, बारह हजार एक सौ पचास मनःपर्यंवज्ञानी, पंद्रह हजार केवल ज्ञानी, उन्नीस हजार आठ सौ वैक्रिय लब्धिवाले, बारह हजार वाद लब्धिवाले (वादी), दो लाख तरानवे हजार श्रावक और छः लाख छत्तीस हजार श्राविकाएं थे। केवल ज्ञान होने के बाद चार पूर्वांग और चौहद वर्ष कम एक लाख पूर्व तक प्रभु ने विहार किया था। - फिर अपना मोक्ष काल समीप समझकर प्रभु परिवार सहित समेतशिखर पर्वत पर गये। वहां एक हजार मुनियों के साथ उन्होंने पादोपगमन अनशन किया। इंद्रादि देव आकर प्रभु की सेवाभक्ति करने लगे। जब सर्वयोग के निरोधक शैलेशी नाम के ध्यान को प्रभु ने समाप्त किया तब चैत्र शुक्ल पंचमी के दिन प्रभु का निर्वाण हुआ। उस समय चंद्रमा मृगशिर नक्षत्र में आया था। एक हजार मुनि भी प्रभु के साथ ही उस समय मोक्ष में गये। इंद्रादि देवों ने केवलज्ञानकल्याणक किया। कुमारावस्था में पंद्रह लाख पूर्व, राज्य में चार पूर्वांग सहित चंवालीस लाख पूर्व और दीक्षा में चार पूर्वांग कम एक लाख पूर्व, इस तरह सब मिला कर साठ लाख पूर्व की आयु प्रभु ने पूर्ण की। उनका शरीर ४०० धनुष्य ऊंचा था। अजितनाथ स्वामी के निर्वाण के तीस लाख कोटि सागरोपॅम समाप्त हुए तब संभवनाथ प्रभु मोक्ष में गये। : श्री संभवनाथ चरित्र : 66 :
SR No.002231
Book TitleTirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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