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________________ ४. श्री अभिनंदन स्वामी चरित्र ____ अनेकान्तमताम्भोधि-समुल्लासनचन्द्रमाः । दद्यादमन्दमानन्दं, भगवानभिनन्दनः ॥ भावार्थ - अनेकांत (स्याद्वाद) मत रूपी समुद्र को आनंदित करने में चंद्रमा के समान हे अभिनंदन भगवान! (सबको) अत्यानंद दीजिए। प्रथम भव : जंबूद्वीप के पूर्व विदेह में मंगलावती नाम की विजय थी। उसमें रत्नसंचय नाम की नगरी थी। उसमें महाबल नाम का राजा राज्य करता था। उसको वैराग्य हो जाने से उसने विमलसूरि नाम के आचार्य के पास से दीक्षा ली। बहुत बरसों तक चारित्र पाला। वीस स्थानक में से कई स्थानकों का आराधन किया तीर्थंकर नाम कर्म उपार्जन किया और अंत में वे कालधर्म. पाये। . दूसरा भव :_महाजल का जीव आयु पूर्णकर विजय नाम के विमान में महर्द्धिक देवता हुआ। तेतीस सागरोपम की आयु भोगी। तीसरा भव : ___महाबल का जीव विजय नामक विमान से च्यवकर भरत क्षेत्र की अयोध्या नगरी के राजा संवर की सिद्धार्था राणी की कोख में वैशाख सुदि चौथ के दिन आया। देवताओं ने च्यवनकल्याण किया। फिर नौ महीने और साढ़े सात दिन पूरे हुए तब सिद्धार्थ राणी ने महा सुदि २ के दिन पुत्र रत्न को जन्म दिया। छप्पन दिक्कुमारी एवं इंद्रादि देवों ने जन्मकल्याणक किया। उनका लांछन वानर का था और वर्ण सोने के समान था। प्रभु जब गर्भ में : श्री तीर्थंकर चरित्र : 67 :
SR No.002231
Book TitleTirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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