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________________ किया। प्रभु ने चवालीस लाख पूर्व और चार पूर्वांग' तक राज्य का उपभोग किया। तीन ज्ञान के धारक प्रभु एक बार एकांत में बैठे हुए थे। उसी समय उन्हें विचार आया – 'यह संसार विष-मिश्रित मिठाई के समान है। खाने में स्वाद लगते हुए भी प्राणहारी है। ऊसर भूमि में अनाज कभी पैदा नहीं होता, इसी प्रकार चौरासी लाख जीव-योनि की दशा है। मनुष्य भव बड़ी कठिनता से मिलता है। प्रबल पुण्य का उदय ही इस योनि का कारण होता है। मनुष्यभव पाकर भी जो इसको व्यर्थ खो देता है, आत्मसाधन नहीं करता है उसके समान संसार में अभागा कोई नहीं है। यह तो अमृत पाकर उसे पैर धोने में खर्च कर देना है। मनुष्य होकर भोग विलास में ही समय निकाल देना मानों रत्न पाकर कौओं को उड़ाने के लिए फेंकना है।' भगवान जब इस प्रकार वैराग्य भावना में मग्न थे उस समय लोकांतिक देवताओं ने आकर विनती की – 'हे प्रभो! तीर्थ प्रवर्तावो।' फिर देवता नमस्कार कर चले गये। ... वर्षी दान देने के.अनंतर भगवान ने सहसाम्र वन में आकर मार्गशीर्ष शुक्ला पूर्णिमा के दिन चंद्रमा जब मृगशिर नक्षत्र में आया था तब संध्या के समय पंच मुष्टि लोच किया और इंद्र का दिया हुआ देवदूष्य वस्त्र धारण कर 'सर्व सावद्य योगों का त्याग कर दिया। . इंद्रादि देव दीक्षाकल्याणक मनाकर स्तुति कर नंदीश्वर द्वीप में अट्ठाई महोत्सव कर अपने-अपने स्थान को गये। दूसरे दिन भगवान पारणे के लिए नगर में गये। सुरेन्द्र राजा के घर पारणा किया। वहां पांच दिव्य प्रकट हुए। ... __चौदह वर्ष तपश्चरण करने के बाद प्रभु को केवल ज्ञान हुआ। उस दिन कार्तिक महीने की कृष्णा ५ थी और चंद्रमा मृगशिर नक्षत्र में आया था। केवल ज्ञान होने के बाद देवताओं ने समवसरण की रचना की। प्रभु ने उसमें बैठकर देशना दी। देशना सुनकर अनेक लोगों को वैराग्य हुआ और उन्होंने दीक्षा ग्रहण की। 1. एक पूर्वांग चौरासी लाख बरस का होता है। : श्री तीर्थंकर चरित्र : 65 :
SR No.002231
Book TitleTirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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