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________________ में पहुंचे। वहां पहुंचते ही उनके सभी घाति कर्म नष्ट हो गये। पौष शुक्ल एकादशी के दिन चंद्र जब रोहिणी नक्षत्र में आया तब प्रभु को 'केवलज्ञान' उत्पन्न हो गया। इस ज्ञान के होते ही तीन लोक में स्थित तीन काल के सभी भावों को प्रभु प्रत्यक्ष देखने लगे। सौधर्मेन्द्र का आसन कांपा। उसने प्रभु को ज्ञान हुआ जान सिंहासन से उतरकर स्तवना की। फिर वह अपने देवों सहित सहसाम्रवन में आया। अन्यान्य इंद्रादि देव भी आये। सबने मिलकर समवसरण की रचना की। भगवान चैत्यवृक्ष की प्रदक्षिणा दे, 'तीर्थायनमः' इस वाक्य से तीर्थ को नमस्कार कर मध्य के सिंहासन पर पूर्व दिशा में मुख करके बैठे। व्यंतर देवों ने तीनों ओर प्रभु के प्रतिबिंब रखे। वे भी असली स्वरूप के समान दिखने लगे। बारह पर्षदाएँ अपने-अपने स्थान पर बैठ गयी। सगर को भी ये समाचार मिले। वह बड़ी धूमधाम के साथ प्रभु की वंदना करने के लिए आया और भक्तिपूर्वक नमस्कार कर अपने योग्य स्थान पर बैठ गया। इंद्र और सगर ने प्रभु की स्तुति की। . ___भगवान ने देशना दी। श्रीमद् हेमचंद्राचार्य ने इस देशना में धर्मध्यान का वर्णन किया है और उसके चौथे पाये संस्थान-विचय का-जिसमें जंबूद्वीप की, रचना मेरुपर्वत आदि का उल्लेख है - वर्णन विस्तारपूर्वक किया है। ___ देशना समाप्त होने पर सगर चक्रवर्ती के पिता वसुमित्र ने जो अब तक भावयति होकर रहे थे - प्रभु से दीक्षा ले ली। ... इसके बाद गणधर नामकर्मवाले और श्रेष्ठ बुद्धिवाले सिंहसेन आदि पंचानवे मुनियों को समस्त आगम रूप व्याकरण के प्रत्याहारों की सी उत्पत्ति, विगम और ध्रोव्य रूप त्रिपदी सुनायी। रेखाओं के अनुसार जैसे चित्रकार चित्र खींचता है वैसे ही त्रिपदी के अनुसार गणधरों ने चौहद पूर्व सहित द्वादशांगी की रचना की। श्री अजितनाथ भगवान के तीर्थ का अधिष्ठाता 'महायक्ष नाम का यक्ष हुआ और अधिष्ठात्री देवी हुई 'अजितबला | यक्ष. का वर्ण श्याम है, : श्री अजितनाथ चरित्र : 56 :
SR No.002231
Book TitleTirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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