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वाहन हाथी का है, हाथ आठ है। देवी का रंग स्वर्णसा है। उसके हाथ चार हैं। वह लोहासनाधिरूढ है।
भ्रमण करते हुए एक बार भगवान कौशांबी नगरी के पास आये। वहां समवसरण की रचना हुई। भगवान ने देशना देनी शुरू की। उसी समय एक ब्राह्मण पतिपत्नी आये। वे भगवान को नमस्कार कर, परिक्रमा दे, बैठ गये।
___जब देशना समाप्त हुई तब ब्राह्मण ने पूछा – 'भगवन्! यह इस मांति कैसे है? भगवान ने उत्तर दिया – 'यह सम्यक्त्व की महिमा है। यही सारे अनिष्टों को नष्ट करने का और सारे अर्थ की सिद्धियों का एक प्रबल कारण है। ऐहिक ही नहीं पारमार्थिक महाफल मुक्ति और तीर्थंकर पद भी इसीसे मिलता है।' . ब्राह्मण सुनकर हर्षित हुआ और प्रणाम करके बोला – 'यह ऐसा ही है। सर्वज्ञ की वाणी कभी अन्यथा नहीं होती।' - श्रोताओं के लिए यह प्रश्नोत्तर एक रहस्य था, इसलिए मुख्य गणधर ने, यद्यपि इसका अभिप्राय समझ लिया था तथापि पर्षदा को समझाने के हेतु से, प्रभु से प्रश्न किया – 'भगवन्! ब्राह्मण ने क्या प्रश्न किया और आपने क्या उत्तर दिया? कृपा करके स्पष्टतया समझाइये।'
. प्रभु ने कहा – 'इस नगर से थोड़ी ही दूर एक शालिग्राम नाम का अग्रहार' है। वहां दामोदार नाम का एक ब्राह्मण रहता था। उसके एक पुत्र था उसका नाम शुद्धभट था। सुलक्षणा नामक कन्या के साथ उसका ब्याह हुआ था। दामोदर का देहांत हो गया। शुद्धभट के पास जो धन संपत्ति थी वह दैवदुर्विपाक से नष्ट हो गयी। वह दाने दाने का मोहताज हो गया। बेचारे के पास खाने को अन्न का दाना और शरीर ढकने को फटा पुराना कपड़ा तक न रहा।
आखिर एक दिन किसी को कुछ न कहकर वह घर से चुपचाप निकल गया। अपनी प्रिय पत्नी तक को न बताया कि, वह कहां जाता है। 1. दान में मिली हुई जमीन पर जो गांव बसाया जाता है उसे अग्रहार कहते हैं।
: श्री तीर्थंकर चरित्र : 57 :