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उपाय सूझा - उन्होंने चेत के बजाय कषाय (लाल) रंग के वस्त्र धारण किये। धूप वर्षा से बचने के लिए वे छत्ता रखने लगे। शरीर पर चंदनादि का लेप करने लगे। स्थूल हिंसा का ही त्याग रखा। जोड़े पहिनने लगे। और नदी आदि का जल पीने लगे और हमेशा कच्चे जल से स्नान करने लगे। इतना करने पर भी वे विहार प्रभु के साथ ही करते थे और जो कोई उनसे उपदेश सुनने आता था। उसे शुद्ध धर्म का ही उपदेश देते थे। अगर कोई उनसे पूछता था कि, तुम ऐसा आचरण क्यों करते हो तो उसे वे कहते थे कि, मेरे में इतनी शक्ति नहीं है।
एक बार वे रूग्ण हुए। साधुओं ने व्रत-त्यागी समझकर उनकी सेवा नहीं की। इससे उनको विशेष कष्ट हुआ और उन्होंने अपने समान कुछ को बनाने का विचार किया। ये जब अच्छे होकर एक बार प्रभु की देशना में समवसरण के बाहर बैठे हुए थे तब कपिल नामक राजकुमार देशना सुनने आया। उन्होंने उसे देशना देकर भगवान के पास भेजा भगवान का प्रतिपादित धर्म उसे बहुत कठोर जान पड़ा। पुनः विचित्र वेषवाले मरिचि के पास आकर पूछा - आपके पास धर्म है या नहीं? तब उन्होंने अपना सहायक करने के लिए योग्य जानकर मेरे पास भी धर्म है ऐसा उत्सूत्र कथन कर कोटा कोटी सागरोपम संसार भ्रमण बढ़ाया और कपिल को अपना शिष्य बनाया तभी से यह परिव्राजक मत प्रचलित हुआ।
ब्राह्मणों की उत्पत्ति - एक बार भरत चक्रवर्ती ने साधु भगवंतों को आहार वहोराने की इच्छा से आहार बनाकर ले गया। भगवंत ने अकल्पनीय कहरकर न लिया। तब इंद्र के कहने से सारे श्रावकों को बुलाकर कहा कि, तुम लोगों को कृषि आदि कार्य न करके केवल पठनपाठन में और ज्ञानार्जन में ही अपना समय बिताना चाहिए और भोजन हमारे रसोड़े में आकर करना चाहिए। वे ऐसा ही करने लगे। मुफ्त का भोजन मिलता देखकर कई आलसी लोग भी अपने को श्रावक बता-बताकर भोजन करने आने लगे। तब श्रावकों की परीक्षा करके उन्हें भोजन दिया जाने लगा। जो श्रावक होते थे उनके, ज्ञान दर्शन और चारित्र के चिह्नवाली, कांकणी रत्न से तीन रेखाएँ
: श्री आदिनाथ चरित्र : 38 :