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________________ महर्षियों-साधुओं से परिवृत्त प्रभु ने वहां से विहार किया। उनके केश, डाढ़ी और नाखून बढ़ते नहीं थे। प्रभु जहां जाते थे वहां १. वैर, २. मरी, ३. ईति, ४. अवृष्टि, ५. दुर्भिक्ष, ६. अतिवृष्ठि और ७. स्वचक्र और परचक्र से होनेवाला भय - ये उपद्रव नहीं होते थे। ___ सुंदरी को भरत ने दीक्षा नहीं लेने दी, इससे वह घर ही में आंबिल करके हमेशा रहती थी। भरत जब छः खंड पृथ्वी को विजय करके आये तब उन्होंने सुंदरी की कृश मूर्ति देखी। उसका कारण जाना और उन्हें दीक्षा लेने की आज्ञा दे दी। उस समय अष्टापद पर प्रभु का समवसरण था। सुंदरी ने वहां जाकर प्रभु के पास से दीक्षा ले ली। भरत ने दीक्षा महोत्सव किया। भरत छः खंड पृथ्वी विजय करके आये तब उन्होंने अपने भाइयों से भी कहलाया कि तुम आकर हमारी सेवा करो। अठानवें भाइयों ने उत्तर दिया कि, हम भरत की सेवा नहीं करेंगे। राज्य हमें हमारे पिता ने दिया है। ___ तत्पश्चात् उन्होंने प्रभु के पास जाकर सारी बातें निवेदन की। प्रभु ने . उन्हें धर्मोपदेश देकर संयम ग्रहण करने की सूचना की। तद्नुसार उन्होंने संयम ग्रहण कर लिया। . ..एक बार प्रभु ने आर्या ब्राह्मी और सुंदरी से कहा – 'भरत से विग्रह कर विजयी बनने के बाद बाहुबलि को वैराग्य हो गया; उसने दीक्षा ग्रहण कर घोर तपश्चर्या आरंभ की है। परंतु उसके मान कषाय का अभी तक नाश नहीं हुआ है। वह सोचता है कि, मैं अपने से छोटे भाइयों को कैसे प्रणाम करूं? जब तक यह भाव रहेगा उसे केवलज्ञान नहीं होगा। अतः तुम जाकर उसे उपदेश दो। यह समय है। वह तुम्हारा उपदेश मान लेगा। ब्राह्मी और सुंदरी ने ऐसा ही किया। बाहुबलि ने वंदन के लिए पैर उठाया कि उनको केवल ज्ञान हो गया। ___. परिव्राजक मत की उत्पत्ति - एक बार उष्ण ऋतु में भरत के पुत्र मरिचि मुनि घबराकर विचार करने लगे कि, इस दुस्सह संयम-भार से छूटने के लिए क्या प्रयत्न करना चाहिए? अगर पुनः गृहस्थ होता हूं तो कुल की मर्यादा जाती है और चारित्र पाला नहीं जाता। सोचते-सोचते उन्हें एक : श्री तीर्थंकर चरित्र : 37 :
SR No.002231
Book TitleTirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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