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________________ पंच कल्याणक तीर्थंकरों के जन्मादि के समय इन्द्रादि देव मिलकर जो उत्सव करते हैं। उन दिनों को कल्याणक कहते हैं। इन दिनों को देवता अपना और प्राणीमात्र का कल्याण करनेवाले समझते हैं। इसीलिए इनका नाम कल्याणक रखा गया है। ये एक तीर्थंकर के जीवन में पांच दिन हैं। इसलिए इनका नाम पंचकल्याणक रखा गया है। इन पाँचों के नाम है १. च्यवन-कल्याणक २. जन्म-कल्याणक ३. दीक्षा-कल्याणक ४. केवलज्ञान-कल्याणकं और ५. निर्वाण-कल्याणक। इन पाँचो कल्याणकों के समय इन्द्रादि देव उत्सव करने के लिए कैसी तैयारियाँ करते हैं। उनका स्वरूप यहाँ लिखा जाता है। १. च्यवन-कल्याणक-भगवान का जीव जब माता के गर्भ में आता है तब इन्द्रों के आसन कंपित होते हैं। इन्द्र सिंहासन से उतरकर भगवान की शक्रस्तव से स्तुति करते हैं और फिर जिस स्थान पर भगवान उत्पन्न होनेवाले होते हैं प्रथम तीर्थंकर के समय में ही वहाँ जाकर भगवान की माता को जो चौदह स्वप्न आते हैं। उन स्वप्नों का फल सुनाते हैं। नंदीश्वर द्वीप पर अट्ठाई उत्सव करते हैं बस इस कल्याणक में इतना ही होता है। २. जन्म-कल्याणक-भगवान का जन्म होता है तब यह उत्सव किया जाता है। जब भगवान का प्रसव होता है तब दिक्कुमारियाँ आती हैं। सबसे पहेले अधोलोक की आठ दिशा-कुमारियाँ आती हैं। इनके नाम ये हैं, १. भोगकरा, २. भोगवती, ३. सुभोगा, ४. भोगमालिनी, ५. तोयधारा, ६. विचित्रा, ७. पुष्पमाला और ८. अनिंदिता। ये आकर भगवान को और उनकी माता को नमस्कार करती हैं। फिर भगवान की माता से कहती हैं कि, – "हम अधोलोक की दिक्कुमारियाँ हैं। तुमने तीर्थंकर भगवान को जन्म दिया है। उन्हीं का जन्मोत्सव करने यहाँ आयी हैं। तुम किसी तरह : तीर्थंकरो की माताओं के चौदह स्वप्न : 310 :
SR No.002231
Book TitleTirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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