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________________ बसायगा। लोग आयेंगे। शहर में और देश में सुख शांति होगी। एक पैसे का मटका भर के धान्य बिकेगा; तो भी खरीददार नहीं मिलेंगे। साधुसंत सुख से विचरण करेंगे। पचार बरस तक सुकाल रहेगा। 'जब राजा कल्कि की मौत निकट आयगी तब वह पुनः धर्मात्माओं को दुःख देने लगेगा। संघ के लोगों सहित प्रतिपद आचार्य को वह गोशाला में बंद कर देगा और उनसे कहेगा-अगर तुम्हारे पास पैसा देने को नहीं है तो जो कुछ मांगकर लाते हो उसी में का छट्ठा भाग दो। इससे कायोत्सर्ग पूर्वक संघ शक्रेन्द्र की आराधना करेगा। शासनदेवी जाकर कल्कि को कहेगी – 'हे राजन! साधुओंने इंद्र की आराधना के लिए कायोत्सर्ग किया है। इससे तेरा अहित होगा।' मगर कल्कि कुछ भी ध्यान नहीं देगा। 'संघ की तपस्या से इंद्र का आसन कांपेगा। वह अपने अवधिज्ञान से संघ का संकट जानकर कल्कि के शहर में आयगा और ब्राह्मण का रूप धरकर राजा के पास जाकर पूछेगा – 'हे. राजन्! तुमने साधुओं को क्यों कैद किया है?' 'तब कल्कि राजा कहेगा – 'हे वृद्ध! ये लोग मेरे शहर में रहते हैं; परंतु मुझे कर नहीं देते। इनके पास पैसे नहीं है, इसलिए मैंने इनको कहा कि, तुम अपनी भिक्षा का छट्ठा भाग मुझे दो; मगर वह भी देने को ये राजी नहीं हुए। इसलिए मैंने इनको गायों के बाड़े में बंद कर दिया है।' तब शक्रेन्द्र उनको कहेगा – 'उन साधुओं के पास तुझे देने के लिए कुछ भी नहीं है। भिक्षा वे इतनी ही लाते हैं जितनी उनको जरूरत होती है। अपनी भिक्षा में से वे किसी को एक दाना भी नहीं दे सकते। ऐसे साधुओं से भिक्षांश मांगते तुम्हें लाज क्यों नहीं आती? अगर अब भी अपना भला चाहते हो तो साधुओं को छोड़ दो वरना तुम्हारा अपकार होगा।' _ 'ये बातें सुनकर कल्कि नाराज होगा और अपने सुभटों को हुक्म देगा- 'इस ब्राह्मण को गर्दनिया देकर निकाल दो।' 'इंद्र कुपित होकर तत्काल ही कल्कि को भस्म कर देगा; उसके पुत्र दत्त को जैनधर्म का उपदेश देकर राज्यगद्दी पर बिठायगा, संघ को मुक्त : श्री तीर्थंकर चरित्र : 289 :
SR No.002231
Book TitleTirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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