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________________ कर नमस्कार करेगा और फिर देवलोक में चला जायगा। कल्कि छियासी वर्ष की आयु पूर्ण कर तुरंत नरक भूमि में जायगा। 'राजा दत्त अपने पिता को मिले हुए अधर्म के फल को याद करके और इंद्र के दिये हुए उपदेश का खयाल करके सारी पृथ्वी को अरिहंत के चैत्यों से विभूषित कर देंगे। पांचवें आरे के अंत तक जैनधर्म चला करेगा। .. तीर्थंकर विचरण करते हैं तब कैसी हालत रहती है? 'तीर्थंकर जब विचरण करते हैं तब वह भरतक्षेत्र सब तरह समृद्ध और सुखी होता है। ऐसा जान पड़ता है मानों यह दूसरा स्वर्ग है। इसके गांव शहरों जैसे, शहर अलकापुरी जैसे, कुटुंबीजन राजा के जैसे, राजा कुबेर के भंडारी जैसा, आचार्य चंद्र के जैसे, पिता देव के जैसे, सासु माता के समान और ससुर पिता के समान होते हैं। लोग सत्य और शौच में तत्पर, धर्माधर्म के जाननेवाले, विनीत, देवगुरु के भक्त और स्वदारासंतोषी (अपनी स्त्री के सिवा सभी स्त्रियों को अपनी मां बहन समझनेवाले) होते हैं। उन लोगों में, विज्ञान, विद्या और कर ही डाला.जाता है। ऐसे समय में भी अरिहंत की भक्ति को नहीं जाननेवाले और विपरीत वृत्तिवाले कुतीर्थियों से मुनियों को उपसर्ग होते ही रहते हैं और दस आश्चर्य भी होते हैं। पांचवां आरा : 'इसके बाद दुःखमा नामक पांचवें.आरे में मनुष्य कषायों से युक्त, लुप्त धर्मबुद्धिवाले और बाड़ बिना के खेत की तरह मर्यादा रहित होंगे। जैसे-जैसे पांचवां काल आगे बढ़ेगा वैसे-वैसे लोग विशेष रूप से कुतीर्थियों द्वारा की गयी, भ्रमित बुद्धिवाले अहिंसा के त्यागी होंगे। गांव स्मशान के जैसे, शहर प्रेतलोक जैसे, कुटुंबी दासों के जैसे और राजा यमदंड के जैसे होंगे। राजा अपने सेवकों पर सख्ती करेंगे और सेवक लोगों को सतायेंगे, अपने संबंधियों को लूटेंगे। इस तरह मात्स्यन्याय' की प्रवृत्ति होगी। जो अंत में होगा वह मध्यम में आयगा और जो मध्य में होगा वह अंत में जायगा। 1. तालाब या समुद्र के अंदर की बड़ी मछली छोटी मछलियों को खाती हैं। मझली और छोटियों को खाती है। छोटी उनसे छोटियों को खाती हैं। बड़ा छोटे को खाय, इसका नाम मात्स्य न्याय है। : श्री महावीर चरित्र : 290 :
SR No.002231
Book TitleTirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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