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फिर रोहिणेय चोर मुनि हो गये। प्रभु महावीर के उपदेश ने और धर्म के आचरण ने चोर को एक पूज्य पुरुष बना दिया। रांजा उदायन की दीक्षा :
भगवान विहार करते हुए मरुमंडल के वीतभय नगर में पधारें। वहां के राजा उदायन ने प्रभु से उपदेश सुन, संसार से विमुख हो दीक्षा ग्रहण की।
प्रभु विहार करते हुए राजगृही में पधारे। वहां श्रेणिक राजा की अनेक राणियों ने पति और पुत्रों के वियोग से उदास हो प्रमु के पास से दीक्षा ली।
राजा कूणिक भी प्रभु के पास वंदना करने आया और उसने नम्रतापूर्लक हाथ जोड़कर पूछा – 'भगवन! जो चक्रवर्ती उम्रभर भोग को नहीं छोड़ते वे मरकर कहां जाते हैं?'
प्रभु ने उत्तर दिया – 'वे मरकर सातवीं नरक में जातें हैं।' कूणिक ने फिर पूछा – 'मैं मरकर कहां जाऊंगा?' .... प्रभु बोले – 'तुम मरकर छट्ठी नरक में जाओगे।' कूणिक ने पूछा – 'सातवीं में क्यों नहीं?' प्रभु बोले – 'इसलिए कि तुम चक्रवर्ती नहीं हो।' कूणिक ने पूछा – 'मैं चक्रवर्ती क्यों नहीं हूं?' प्रभु बोले – 'इसलिए कि तुम्हारे पास चक्रादि रत्न नहीं है।' .
कूणिक इससे बहुत दुःखी हुआ और वह चक्रवर्ती बनने का इरादाकर अपने महलों में चला गया। राजा हस्तिपाल के स्वप्नों का फल :
___ प्रभु विहार करते हुए अपना अंतिम समय जानकर अपापा पूरी में समोसरे। वहां का राजा हस्तिपाल प्रभु को वंदना करने आया। वंदना कर, अपने आसन पर बैठा।
प्रभु ने उपदेश दिया – 'इस जगत में धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष नाम के चार पुरुषार्थ हैं। इनमें से अर्थ और काम तो नाम मात्र के पुरुषार्थ हैं। क्योंकि इनका परिणाम अनर्थ रूप होता है। वास्तव में पुरुषार्थ तो मोक्ष है। और उसका कारण धर्म है। धर्म संयम आदि दस तरह का है। वह
: श्री महावीर चरित्र : 284 :