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छोड़ देने के आपके महान त्याग ने मुझे गर्व हीन कर दिया। त्यागी महात्मन्! मेरी भक्ति-वंदना स्वीकार कीजिए।'
वैभवभोगी से वैभवत्यागी महान् होता है। दुनिया में उसकी कोई समता नहीं। धन्ना और शालिभद्र की दीक्षा :
- धन्ना और शालिभद्र दोनों महान समृद्धिवान थे। राजगृही नगरी में रहते थे। एक बार राजा श्रेणिक को शालिभद्र को देखने की इच्छा पूर्ण करने हेतु शालिभद्र की माता ने अपने यहां आमंत्रण दिया। राजा श्रेणिक उसके घर आये। शालिभद्र सातवें खंड में रहते थे। उन्हें माता ने जाकर कहा - 'पुत्र! नीचे चलो। तुम्हारे स्वामी राजा आये हैं।'
मेरे सिरपर भी स्वामी है' यह बात शालिभद्र को बहुत बुरी लगी और वे सब वैभव का त्याग करने लगे। शालिभद्र के बहनोई 'धन्ना' थे। उनको भी यह बात मालूम हुई। उन्हें भी वैराग्य हो आया। फिर जब भगवान महावीर विहार करते हुए वैभारगिरि पर आये। तब शालिभद्र और धन्ना ने भगवान के पास जाकर दीक्षा ले ली। • रोहिणेय चोर की दीक्षा :
प्रभु राजगृही के अंदर समवसरण में विराजमान थे। उस समय एक पुरुष प्रभु के पास आया, चरणों में गिरा और बोला – 'नाथ! आपका उपदेश संसारसागर में गोता खाते हुए मनुष्य को पार करने में जहाज का काम देता है। धन्य है वे पुरुष जो आपकी वाणी श्रद्धापूर्वक सुनते हैं और उसके अनुसार आचरण करते हैं। भगवन्! मैंने तो एक बार कुछ ही शब्द सुने थे; परंतु उन्होंने भी मुझे बचा लिया है।'
_ फिर उसने प्रभु से उपदेश सुना। सुनकर उसे वैराग्य हुआ। उसने पूछा- 'प्रभो! मैं यतिधर्म पाने के योग्य हूं या नहीं? क्योंकि मैंने जीवनभर चोरी का धंधा किया है और अनेक तरह के अनाचार सेवे हैं।'
, प्रभु बोले – 'रोहिणेय! तुम यतिधर्म के योग्य हो।'
: श्री तीर्थंकर चरित्र : 283 :