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राजधानी दशार्ण नाम की नगरी थी। वहां दशार्णभद्र नाम का राजा राज्य करता था। दशार्ण नगरी के बाहर प्रभु का समवसरण हुआ। राजा को यह खबर मिली। वह अपने पूर्ण वैभव के साथ प्रभु के दर्शन करने गया और प्रभु को वंदना कर उचित स्थान पर बैठा। उसको गर्व हुआ कि, मेरे समान वैभववाला दूसरा कौन है।
इंद्र को राजा दशार्णभद्र के इस अभिमान की ख़बर पड़ी। उसने राजा को, उपदेश देना स्थिर कर एक अद्भुत रथ बनाया। वह विमान जलमय था। उसके किनारों पर कमल खिले हुए थे। हंस और सारस पक्षी मधुर बोल रहे थे। देव वृक्षों और देवलताओं से सुंदर पुष्प उसमें गिरकर वैर रहे थे। नील कमलों से वह विमान इंद्रनील मणिमय सा लगता था। मरकत मणिमय कमलिनी में सुवर्णमय विकसित कमलों के प्रकाश का प्रवेश होने से वह अधिक चमकदार मालूम हो रहा था। और जल की चपल तरंगों की मालाओं से वह ध्वजापताकाओं की शोभा को धारण कर रहा था। इसका विशेष वर्णन दशार्ण भद्र राजा के चरित्र से जानना।
___ ऐसे जलकांत विमान में बैठकर एक हाथी की सूंढ़ में अनेक वापिकाएँ एक-एक वापिका में कमल पर नृत्य करती देवांगनाओं के साथ इंद्र समवसरण में आया, इंद्र का वैभव देखकर दशार्ण-भद्र राजा के गर्व को धक्का लगा। उसे खयाल आया कि, मेरा वैभव तो इस वैभव के सामने तुच्छ है। छि: मैं इसी पर इतना फूल रहा हूं। क्यों न मैं भी उस अनंत वैभव को पाने का प्रयत्न करूं जिसको प्राप्त करने का उपदेश महावीर स्वामी दे रहे हैं।
राजा ने वहीं अपने वस्राभूषण निकाल डाले और अपने हाथों ही से लोच भी कर डाला। देवता और मनुष्य सभी विस्मित थे। फिर दशार्णभद्र ने गौतम स्वामी के पास आकर यतिलिंग धारण किया और देवाधिदेव के चरणों में उत्साह पूर्वक वंदना की।
दशार्णभद्र का गर्वहरण करने की इच्छा रखनेवाला इंद्र आकर मुनि के चरणों में झुका और बोला – 'महात्मन्! मैंने आपके वैभव-गर्व को अपने वैभव से नष्ट कर देना चाहा। वह गर्व नष्ट हुआ भी; परंतु वैभव को एकदम
: श्री महावीर चरित्र : 282 :