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संसार-सागर से जीवों को तारता है। संसार अनंत दुःख रूप है और मोक्ष अनंत सुख रूप है। इसलिए संसार को छोड़ने और मोक्ष को पाने का कारण एक मात्र धर्म ही है। जैसे लंगड़ा मनुष्य भी सवारी के सहारे दूर की मुसाफरी कर सकता है वैसे ही घोर कर्मी मनुष्य भी धर्म के सहारे मोक्ष में जा सकता है।'
राजा ने नम्रतापूर्वक पूछा – 'भगवन्! मैंने रात को स्वप्न में क्रमशः हाथी, बंदर, क्षीरवाला, वृक्ष, कौआ, सिंह, कमल, बीज और कुंभ ये आठ चीजें देखी थीं। कृपा करके कहिए कि इनका फल क्या होगा?' प्रभु बोले :- .
१. हाथी - अब से श्रावक समृद्धि के-दौलत के-क्षणिक सुख में लुब्ध .. होंगे। हाथी के समान शरीर रखते हुए भी आलसी होकर घर में पड़े
रहेंगे। महासंकट में आ पड़ने पर भी और परचक्र का भय होने पर भी वे संयम नहीं लेंगे। यदि कुछ ले लेंगे तो कुसंग दोष से उसे छोड़ देंगे। कुसंग दोष में भी संयम पालनेवाले विरले ही होंगे। २. बंदर - दूसरे स्वप्न का फल है.किं गच्छ के स्वामी आचार्य लोग . बंदर के समान चपल (अस्थिर) स्वभाव वाले, थोड़ी शक्ति वाले और
व्रत-पालन में प्रमाद करने वाले होंगे। इतना ही नहीं जो धर्म में स्थिर होंगे उनके भावों को भी विपरीत बनायेंगे। धर्म के उद्योग में तत्पर तो विरले ही निकलेंगे। जो खुद धर्माचरण में शिथिल होते हुए भी दूसरों को धर्मोपदेश देंगे उनकी लोग ऐसे ही दिल्लंगी करेंगे जैसे गावों के लोग शहर में रहनेवाले (श्रम से - डरनेवाले) लोगों की किया करते हैं। हे राजन! भविष्य में इस तरह
के प्रवचन से अज्ञात पुरुष आचाार्यादि होंगे। ३. क्षीरवृक्ष - तीसरे स्वप्न का फल यह है कि, सातों क्षेत्रों में द्रव्य का
उपयोग करनेवाले, क्षीरवृक्ष के जैसे दातार श्रावक होंगे। उन्हें . लिंगधारी (वेषधारी) ठग रोक लेंगे, (अपने रागी बना लेंगे) ऐसे पाखंडियों की संगति से सिंह के समान सत्त्वशील आचार्य भी उन्हें
: श्री तीर्थंकर चरित्र : 285 :