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________________ उत्पन्न हुआ कहना, और जो अभी किया जाता हो उसके लिए हो चुका कहना, ऐसा महावीर कहते हैं, वह अयोग्य है। कारण इसमें प्रत्यक्ष विरोध मालूम होता है। वर्तमान और भविष्य क्षणों के समूह के योग से जो कार्य हो रहा है उसके लिए 'हो चुका' कैसे कहा जा सकता है? जो बच्चा गर्भ में होता है उसके लिए कोई नहीं कहता कि, बच्चा पैदा हो गया। इसलिए हे मुनियो! जो कुछ मैं कहता हूं उसे स्वीकार करो। कारण, मेरा कहना-युक्तिसंगत है। सर्वज्ञ की तरह विख्यात महावीर मिथ्या कह ही नहीं सकते ऐसा कभी मत सोचो। क्योंकि कभी महापुरुषों में भी स्खलना-भ्रांति होती है। जमाली की यह बात जिनं साधुओं को युक्ति-युक्त न जान पड़ी वे जमाली को छोड़कर महावीर के पास चले गये। बाकी उन्हीं के पास रहे। जमाली की पूर्वावस्था की पत्नी प्रियदर्शना ने भी मोहवश जमाली के पक्ष को ही स्वीकार किया। एक बार महावीर स्वामी जब चंपानगरी के पूर्णभद्र वन में समोसरे थे तब जमाली उनके पास गये और बोले – 'हे भगवान! आपके अनेक शिष्य छद्मस्थ ही कालधर्म को प्राप्त हो गये हैं; परंतु मैं ऐसा नहीं हूं। मुझे भी केवलज्ञान और केवलदर्शन प्राप्त हुए हैं। इसलिए मैं भी सर्वज्ञ हूं।' जमाली का यह कथन सुनकर गौतम स्वामी ने पूछा – 'जमाली! अगर तुम सर्वज्ञ हो तो बताओ कि यह जीव और लोक शाश्वत (अपरिवर्तनशील) है या अशाश्वत ( परिवर्तनशील)' जमाली इसका कोई जवाब न दे सके। तब महावीर बोले – 'तत्त्व की दृष्टि से जीव और लोक दोनों शाश्वत हैं। द्रव्य की दृष्टि से अशाश्वत है।' जिस समय यह घटना हुई थी उस समय महावीर को केवलज्ञान हुए चौदह बरस हुए थे। महावीर के उपदेश से. भी जमाली ने जब अपने मत को न छोड़ा तब वे संघ बाहर कर दिये गये। एक बार जमाली फिरते हुए श्रावस्ती में गये। प्रियदर्शना भी वहीं 'ढंक' नामक कुम्हार की जगह में अपनी एक हजार साध्वियों के साथ उतरी थीं। ढंक श्रद्धावान श्रावक था। उसने प्रियदर्शना को जैनमत में लाने का निश्चय किया। एक दिन उसने प्रियदर्शना के वस्त्रपर अंगारा डाल दिया। प्रियदर्शना बोली - 'ढंक! तुमने मेरा वस्त्र जला दिया।' ढंक बोला – 'मैं आपकी मान्यता के अनुसार कहता हूं कि आप मिथ्या बोलती हैं। कपड़े का जरा सा भाग जला है। इसे आप कपड़ा जला दिया : श्री तीर्थंकर चरित्र : 267 :
SR No.002231
Book TitleTirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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