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महावीर स्वामी की पुत्री प्रियदर्शना ने भी एक हजार स्त्रियों के साथ दीक्षा ले ली। (भगवती सूत्र में और विशेषावश्यक सूत्र में इनका नाम प्रियदर्शना, ज्येष्ठा और अनवद्यांगी भी लिखा है।) महावीर के प्रभाव से शत्रुओं में मेल :___-एक बार विहार करते हुए महावीर स्वामी कोशांबी आये। उस समय कोशांबी को घेर कर उज्ज्यनी का राजा चंडप्रद्योत पड़ा हुआ था। महावीर के कोशांबी में आने के समाचार सुन कोशांबी की महारानी मृगावती ने निर्भय होकर किले के फाटक खोल दिये और वह अपने परिवार सहित समवसरण में गयी। राजा चंडप्रद्योत भी प्रभु की देशना सुनने गया। देशना के अंत में राणी मृगावती ने उठकर अपना पुत्र उदयन चंडप्रद्योत को सौंपा
और कहा - 'इसकी आप अपने पुत्र के समान रक्षा करें और मुझे दीक्षा लेने की आज्ञा दें। मैं इस संसार से उदास हूं।'
कहती है। यह आपके सिद्धांत के विरुद्ध है। आप जलते हुए को जल गया नहीं कहतीं। ऐसा तो महावीर स्वामी कहते हैं।', . प्रियदर्शना बुद्धिमती थीं। उन्हें अपनी भूल मालूम हुई। उन्होंने महावीर स्वामी के पास जाकर प्रायश्चित्त कर पुनः शुद्ध सम्यक्त्व धारण किया। जमाली अंत तक अपने नवीन मंत की प्ररूपणा करते रहे। इनके मत का नाम 'बहुरत वाद था। इसका अभिप्राय यह है कि होते हुए काम को हुआ ऐसा न कहकर संपूर्ण हो चुकने पर ही हुआ कहना। [इस संबंध में विशेष जानने के लिए विशेषावश्यक सूत्र में गाथा २३०६ से २३३३ तक और भगवती सूत्र के नवें शतक के ३३ वें उद्देशक में देखना चाहिए।]. मृगावती कोशांबी के राजा शतानीक की पत्नी थी। जैनधर्म में उसकी पूर्ण श्रद्धा थी। एक बार राजा शतानीक ने सुंदर चित्रशाला बनवायी। एक चित्रकार चित्रकारो में किसी यक्ष की कृपा से ऐसा होशियार था कि किसी भी व्यक्ति के शरीर को कोई अंग देखकर उसका सारा चित्र बना देता था। चित्रशाला में चित्र बनाते समय उसे अचानक मृगावती रानी के पैर का अंगूठा दिख गया। इससे उसने रानी का पूरा चित्र बना डाला। चित्र बनाते वक्त चित्र की जांघ पर पीछी से काले रंग की बूंद, गिर पड़ी। चित्रकार ने उसे मिटा दी। दूसरी बार और गिरी जब तीसरी बार भी गिरी तब उसने सोचा, इसकी यहां आवश्यकता
: श्री महावीर चरित्र : 268 :