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________________ विषय में शंका कैसी?' मौर्यपुत्र का भी संदेह मिट गया और उन्होंने भी अपने ३५० शिष्यों के साथ दीक्षा ले ली। उनके बाद अकंपित' शिष्यों से सहित प्रभु के पास आये। प्रभु बोले- 'हे अकंपित! तुमको नारकी जीवों के संबंध में शंका है। परंतु नारकी जीव है। वे बहुत परवश हैं। इसलिए यहां नहीं आ सकते हैं और मनुष्य वहां जा नहीं सकते। इसलिए सामान्य मनुष्य को उनका ज्ञान नहीं हो सकता। सामान्य मनुष्य युक्तियों से उन्हें जान सकता है। क्षायिक ज्ञानवाला उन्हें प्रत्यक्ष देख सकता है। कोई क्षायिक ज्ञानवाला है ही नहीं यहा शंका भी बिलकुल व्यर्थ है। क्योंकि मैं क्षायिक ज्ञानी प्रत्यक्ष यहां मौजूद हूं।' अकंपित की शंका मिट गयी और उन्होंने अपने ३०० शिष्यों के साथ दीक्षा ले ली। उनके बाद अचलभ्राता अपने शिष्यों सहित महावीर के पास आये। प्रभु बोले – 'हे अचलभ्राता! तुम्हें पाप पुण्य में संदेह है। मगर यह शंका मिथ्या है। कारण, इस दुनिया में पाप पुण्य के फल प्रत्यक्ष है। संपत्ति, रूप, उच्च कुल, लोक में सन्मान अधिकार आदि बातें पुण्य का फल है। इनके विपरीत दरिद्रता, कुरूप, नीच कुल, लोक में अपमान इत्यादि बातें पाप का फल है।' .. .. अचल भ्राता की शंका मिट गयी और उन्होंने अपने ३०० शिष्यों के साथ दीक्षा ले ली। उनके बाद मेतार्य प्रभु के पास आये। प्रभु बोले – 'हे मेतार्य! 1. अकंपित के पिता का नाम देव और इनकी माता का नाम जयंती था। ये विमलपुरी के रहनेवाले गौतम गोत्रीय ब्राह्मण थे। इनकी उम्र ७८ बरस की थी। ये ४८ बरस गृहस्थ, ९ बरस छद्मस्थ और २१ बरस केवली रहे। 2. अचलभ्राता के पिता का नाम वसु और उनकी माता का नाम नंदा था। वे कोशल नगरी के रहनेवाले हारीत गोत्रीय ब्राह्मण थे। उनकी उम्र ७२ बरस की थी। वे ४६ बरस गृहस्थ, १२ बरस छद्मस्थ और १४ बरस केवली रहे थे। 3. मेतार्य के पिता का नाम दत्त और इनकी माता का नाम करुणा था। ये वत्स देश के तुंगिक नामक गांव में रहनेवाले कौडिन्य गोत्रीय ब्राह्मण थे। इनकी उम्र ६२ बरस की थी। ये ३६ बरस गृहस्थ, १० बरस छद्मस्थ और १६ बरस केवली रहे थे। : श्री तीर्थंकर चरित्र : 261 :
SR No.002231
Book TitleTirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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