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________________ + में जन्मता है और यदि उसका जीवन परोपकार परायण होता है तो वह देव बनता है। .. सुधर्मा की शंका मिट गयी और उन्होंने भी अपने ५०० शिष्यों के साथ महावीर स्वामी के पास से दीक्षा ले ली। उनके बाद मंडिक' महावीर के पास आये। प्रभु ने कहा – 'हे मंडिक, तुमको बंध और मोक्ष के विषय में संशय है। यह संशय वृथा है। कारण, यह बात बहुत ही प्रसिद्ध है कि बंध और मोक्ष आत्मा का होता है। मिथ्यात्व और कषायों के द्वारा कर्मों का आत्मा के साथ जो संबंध होता है उसे बंध कहते हैं और इसी बंध के कारण जीव चार गति में परिभ्रमण करता है व दुःख उठाता है। सम्यग्ज्ञान, सम्यग्दर्शन और सम्यकचारित्र के द्वारा आत्मा का कर्मों से जो संबंध छूट जाता है उसे मोक्ष कहते हैं। मोक्ष से प्राणी को अनंत सुख मिलता है। जीव और कर्म का संयोग अमादि सिद्ध है। आग से जैसे सोना और मिट्टी अलग हो जाते हैं वैसे ही ज्ञान, दर्शन और चारित्र रूपी अग्नि से आत्मा और कर्म अलग हो जाते हैं। मंडिक का संशय जाता रहा और उन्होंने अपने ३५० शिष्यों के साथ दीक्षा ले ली। उनके बाद मौर्यपुत्र अपने शिष्यों के साथ महावीर के पास आये। प्रभु बोले – 'हे मौर्यपुत्र! तुमको देवताओं के विषय में संदेह है। मगर वह संदेह मिथ्या है। इस समवसरण में आये हुए इंद्रादि देव प्रत्यक्ष है। इनके 1. मंडिक के पिता का नाम धनदेव और माता का नाम विजयदेवा था। ये मौर्य गांव के रहनेवाले वशिष्ट गोत्रीय ब्राह्मण थे। इनका जन्म होते ही धनदेव की मृत्यु हो गयी थी। इसलिए विधवा विजयदेवा से धनदेव के मासियात भाई मौर्य ने ब्याह कर लिया था। मंडिक की उम्र ८३ बरस की थी। ये ५३ बरस गृहस्थ, १४ बरस छद्मस्थ साधु और १६ बरस केवली रहे। . 2. इनके पिता का नाम मौर्य और इनकी माता का नाम विजयदेवा था। ये मौर्य गांव के रहनेवाले काश्यप गोत्र के ब्राह्मण थे। इनकी उम्र ९५ बरस की थी। ये ६५ बरस गृहस्थ, १४ बरस छद्मस्थ और १६ बारस केवली रहे थे। विजयदेवा मंडिक के पिता धनदेव की पत्नी थी; मगर विधवा हो जाने के बाद उसने मौर्य के साथ शादी कर ली थी। : श्री महावीर चरित्र : 260 :
SR No.002231
Book TitleTirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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