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________________ 'भगवान बालुका गांव में पहुचे और गोचरी गये। वहां उसने प्रभु को काणाक्षी रूप-काना-बना दिया, वहां से सुभोम गांव गये, वहां हाथ पसार के मांगनेवाले बनाये, वहां से सुक्षेत्र गांव गये। वहां विटका (नटका) रूप बना दिया। मलय गांव गये। वहां पिशाच का रूप बताया। हस्तिशीर्ष गांव गये वहां उनका शिवरूप(?) बनाया फिर प्रभु मसाण में जाकर रहे। वहां संगम ने हंसी की और इंद्र ने आकर सुखसाता पूछी। प्रभु तोसलिया गांव गये। वहां कुशिष्य का रूप धरकर संगम ने एक सेंघ लगायी। लोगों ने इन्हें पकड़कर पीटना आरंभ किया। घर में महाभूति नाम के इंद्रजालिए ने प्रभु को पहचानकर छुड़ाया। मोसली गांव गये। वहां भी संगम ने शिष्य बन संघ लगायी। सिद्धार्थ के मित्र सुमागध ने उन्हें छुड़ाया। पुनः तोसली गांव में गये। वहां चोर समझकर पकड़े गये। लोग रस्सी से बांधकर झाड़ पर लटकाने लगे। सात बार रस्सी टूट गयी। इससे निर्दोष समझकर छोड़ दिया। वहां से सिद्धार्थपुर गये। वहां भी चोर समझकर पकड़े गये। वहां कौशिक नामक घोड़े के व्यापारी ने प्रभु को छुड़ाया।' इस तरह छः महीने तक अनेक उपसर्ग करके भी जब संगम प्रभु के मन को क्षुब्ध न कर सका तब उसने लाचार होकर प्रभु से कहा – 'हे क्षमानिधि! आप मेरे अपराध क्षमा कीजिए और जहां इच्छा हो वहां निःशंक होकर विहार करिए। गांव में जाकर निर्दोष आहारपानी लीजिए।' महावीर स्वामी बोले – 'हम निःशंक होकर ही इच्छानुसार विहार करते हैं। किसीके कहने से नहीं।' फिर संगम देवलोक में चला गया। इंद्र ने उसे देवलोक से निकाल दिया। प्रभु गोकुल गांव में गये। वत्सपालिका नाम की गवालिन ने प्रभु को परमान्न से प्रतिलाभित किया। वहां से विहार कर प्रमु आलमिका नगर गये। वहां हरि नाम का विद्युत्कुमारों का इंद्र प्रभु को नमस्कार करने आया और नमस्कार कर बोला-'हे नाथ! आपने जो उपसर्ग सहे हैं उन्हें सुनकर ही हम कांप उठते हैं। सहन करना तो बहुत दूर की बात है। अब आपको, थोड़े उपसर्ग और सहन करने के बाद केवलज्ञान प्राप्त होगा।' : श्री महावीर चरित्र : 244 :
SR No.002231
Book TitleTirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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