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________________ १६. प्रचंड पवन चलाया। उससे प्रभु मंदिर में हवा के भयंकर झपाटों से इधर से उधर उड़ उड़कर टकराने लगे। १७. वंटोलिया' पवन चलाया। इससे चाक पर जैसे मिट्ट का पिंड फिरता है वैसे महावीर घूमे। १८. हजार भार का एक कालचक्र बनाया और उसे महावीर के सर पर डाला इससे महावीर घुटनों तक जमीन में धंस गये। जब इन प्रतिकूल उपसर्गों से महावीर स्वामी विचलित नहीं हुए तो उसने दो अनुकूल उपसर्ग किये। १६. उसने सुंदर प्रातःकाल किया। देवता की ऋद्धि बतायी और विमान __ में बैठकर कहा – 'हे महर्षि! मैं तुमसे प्रसन्न हूं। जो मांगो सो दूं। स्वर्ग, मोक्ष या चक्रवर्ती का राज्य। जो चाहिए सो मांग लो।' २०. एक ही समय में छहों ऋतुएँ प्रकट की; फिर जगमनमोहक देवांगनाएँ बनायी, हाव, भाव, कटाक्ष से उनको विचलित करने का यत्न किया।2. इस तरह रातभर उपसर्ग सहन करने के बाद प्रभु बालुक गांव की तरफ चले। रास्ते में संगम ने पांच सौ चोर पैदा किये और बहुतसा रेता बरसाया। चलते समय प्रभु के पैर पिंडलियों तक रेता में घुसते जाते थे और चोर प्रभु को 'मामा', 'मामा' करते इतने जोर से सीने से चिमटाते थे कि अगर सामाम्य.शरीर होता तो चूर चूर हो जाता। . इसी तरह उसने छ: महीने तक अनेक तरह के उपसर्ग किये। विशेष आवश्यक के अंदर संगम ने छः महीने तक क्या क्या उपसर्ग किये और महावीर स्वामी ने कहां कहां विहार किया उसका उल्लेख है। हम उसका अनुवाद यहां देते हैं। 1. चक्र की तरह फिरानेवाला वायु, भूतिया पवन 2. विशेषावश्यक में यह परिसह नहीं है। इसकी जगह उन्नीसवां और उन्नीसवें की जगह संवर्तक वायु का चलाना लिखा है। कल्पसूत्र में उन्नीसवां और बीसवां बीसवें में हैं और उन्नीसवें में लिखा है – 'प्रभात करके संगम ने महावीर को कहा कि सवेरा हो जाने पर भी, इस तरह ध्यान में कहां तक रहोगे।' : श्री तीर्थंकर चरित्र : 243 :
SR No.002231
Book TitleTirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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