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कुंडक से विहार कर प्रभु मर्दन नामक गांव में आये और वहां बलदेव के मंदिर में प्रतिमा धारण कर रहे।
मर्दन गांव से विहार कर प्रभु बहुशाल नामक गांव में गये। वहां शालवन नामक उद्यान में प्रतिमा धारण कर रहे। वहां एक व्यंतरी ने अनेक तरह के उपसर्ग किये।
____ बहुशाल से विहार कर महावीर स्वामी लोहार्गल नामक गांव में गये। वहां के जितशत्रु राजा का किसी अन्य राजा के साथ युद्ध हो रहा था। इसलिए राजकर्मचारियों ने इन दोनों को गुप्तचर समझकर पकड़ा और राजा के सामने उपस्थित किया। उस समय अस्थिक गांव का उत्पल निमित्तिया आया हुआ था। उसने प्रभु को पहचाना और राजा को उनका परिचय दिया। उन्होंने उन्हें क्षमायाचना कर छोड़ दिया।
. लोहार्गल से विहार कर प्रभु पुरिमताल नगर गये और शहर के बाहर शकट नामक उद्यान में कायोत्सर्ग करके रहे।2
परिमताल से विहार कर प्रभु उष्णक नामक गांव की तरफ चले। रास्ते में किन्हीं वरवधू की दिल्लगी करने से लोगों ने गोशालक को बांधकर डाल दिया; परंतु पीछे से प्रभु का सेवक समझकर छोड़ दिया। 1. यहां भी गोशालक कुचेष्टा करने से पिटा गया। 2. पुरिमताल में एक वागुर नाम का धनाढ्य सेठ रहता था। उसके कोई संतान नहीं
थी। वह अपनी सेठानी भद्रा सहित एक बार शकटोद्यान में गया। वहां एक जीर्ण मंदिर में मल्लिनाथजी की मूर्ति के सामने उसने बाधा ली कि अगर तुम्हारे प्रभाव से मेरे संतान होगी तो मैं तुम्हारा मंदिर अच्छा बनवाऊंगा और हमेशा के लिए. तुम्हारा भक्त हो जाऊंगा। किसी अर्हतभक्त व्यंतरी के प्रभाव से उसके संतान हुई और उसने अपनी प्रतिज्ञा पाली। भगवान महावीर आये उस दिन इंद्र
ने उन्हें नमस्कार करने के लिए कहा। सेठ सेठानी ने वैसा किया। 3. रास्ते में बदसूरत वरवधू मिले। उन्हें देखकर गोशालक उनके सामने गया और
बोला – 'वाह! कैसी विधाता की लीला है? दोनों तोंदवाले, दोनों कुबड़े और दौनों दांतले। हरेक बात में एकसे। तिल घटे न राई बढ़े।' इस तरह की गोशालक की बातें सुनकर बराती नाराज हुए और उन्होंने उसे पकड़ कर बांध दिया। पीछे से प्रभु का सेवक समझकर छोड़ दिया। आगे चलते हुए गवाले मिले। उसने पूछा – 'हे म्लेच्छो! हे बद शकलो! बताओ यह रास्ता कहां
: श्री तीर्थंकर चरित्र : 237 :