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________________ अपशकुन समझा। वह घन लेकर उन्हें मारने दौड़ा। इंद्र ने अपनी शक्ति से वह घन उसी के सिर पर डाला और वह वहीं मर गया। विशाली से विहार कर प्रभु ग्रामक गांव आये और गांव के बाहर उद्यान में विभेलिक नामक यक्ष के मंदिर में कायोत्सर्ग करके रहे। यक्ष को पूर्व भव में सम्यक्त्व का स्पर्श हुआ था इसलिए उसने प्रभु की पूजा की। ग्रामक गांव से विहार कर प्रभु शालिशीर्ष नामक गांव में आये। वहां उद्यान में प्रतिमा धरकर रहे। कटपूतना नाम की वाण 1 व्यंतरी ने रातभर प्रभु पर उपसर्ग किये। शांति से उपसर्ग सहन कर प्रभु ने लोकावधि नाम का अवधिज्ञान प्राप्त किया। भद्रिकापुर में छट्ठा चौमासा : शालिशीर्ष से विहार कर प्रभु भद्रिकापुरी में आये। वहां चार मासक्षमण कर छट्टा चौमासा वहीं किया। वहीं पर गोशालक भी छः महीने के बाद पुनः महावीर प्रभु के पास आ गया। वर्षाकाल बीतने पर महावीर ने नगर के बाहर पारणा किया। आठ महीने तक भगवान ने मगध देश में विविध स्थानों में विहार किया। आलंभिका नगरी में सातवां चौमासा : चौमासे के आरंभ से पहले महावीर भगवान आलंभिका नगरी में आये। सातवां चौमासा वहीं व्यतित किया। चौमासा पूर्ण होने पर गांव के बाहर चौमासी तप का पारणा किया। आलंभिका से विहार कर प्रभु गोशालक सहित कुंडक गांव में आये। वहां वासुदेव के मंदिर में एक कोने में प्रतिमा धारण कर रहे। 2 1. कटपूतना का जीव प्रभु महावीर का जीव जब त्रिपृष्ठ वासुदेव था तब उनकी विजयवती नाम की रानी था। त्रिपृष्ठ से उसे उचित आदर नहीं मिलता था। इससे वह क्रोध करके मरी थी। अनेक भव भटकने के बाद मनुष्य भव में आयी और वहां बालतप कर वाणव्यंतरी हुई। प्रभु महावीर को देख, पूर्वभव का वैर यादकर उसने महावीर पर उपसर्ग किये। 2. गोशालक ने वहां वासुदेव की मूर्ति की कुचेष्ठा की। उसी समय वहां पुजारी आया। उसने इसे नग्न साधु समझ इसकी बुराई लोगों को बताने के लिए गांव के लोगों को बुलाया। लड़के और जवान उसे मारने लगे । बूढ़ों ने उसे पागल समझ छुड़वा दिया। : श्री महावीर चरित्र : 236 :
SR No.002231
Book TitleTirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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