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गुस्सा चढ़ा और उसने शीशा गरम करवाकर उसके कान में डलवा दिया। बेचारा द्वारपाल त्रिपृष्ठ के इस क्रूर कर्म से तड़पकर मर गया।
त्रिपृष्ठ ने और भी ऐसे अनेक क्रूर कर्म किये थे। जिनसे उसने भयंकर असातावेदनी कर्म बांधा और अंत में मरकर वह सातवीं नरक में गया। त्रिपृष्ठ के भाई अचल बलभद्र वैराग्य पा, दीक्षा ले मोक्ष में गये। चक्रवर्ती प्रियमित्र का भव :
मरीचि का जीव नरक से निकलकर केशरीसिंह हुआ। फिर मनुष्य तियंचादि के कई भवों में भ्रमणकर अंत में मनुष्य जन्म पाया। और शुभ कर्मों को उपार्जन कर अपर विदेह में, धनंजय की राणी धारिणी के गर्भ से जन्मा और प्रियमित्र नाम रखा गया। युवा होने पर उसने छः खंड पृथ्वी की साधना की और देवताओं ने तथा राजाओं ने बारह वर्ष तक उत्सव कर उसे चक्रवर्ती पद से सुशोभित किया। [यह २३ वाँ भव हुआ ]
अनेक वर्षों तक न्याय पूर्वक राज्य कर प्रियमित्र ने पोट्टिल नाम के. आचार्य से दीक्षा ली और तपकर वह महा शुक्रदेवलोक में सर्वार्थ नामक विमान में देवता हुआ।
(राजा नंदन का भव) :
.महाशुक्र देवलोक से च्यवकर भरतखंड के छत्रा नामक नगर में जितशत्रु · राजा की भद्रा नामा रानी के गर्भ से मरीचि का जीव जन्मा । नाम • नंदन रखा गया। राजा जितशत्रु के दीक्षा लेने पर नंदन राजा सिंहासन पर बैठा। कई बरसों तक राज्य कर जब चौबीस लाख बरस की आयु हुई तब उसने पोट्टिलाचार्य से दीक्षा ली और बीस स्थानक की आराधना में मासखमण के पारणे मासखमण कर तीर्थंकर नाम कर्म बांधा। नंदन - ऋषीजी ने ११८८६४५ मासखमण किये। :
(प्राणत नामक देवलोक में देव ) :
नंदन मुनि आयुष्य के अंत में अनशन ग्रहण कर प्राणत नामक देवलोक में पुष्पोत्तर विमान में देव हुए।
: श्री तीर्थंकर चरित्र : 205 :