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________________ त्रिपृष्ठ बोला -- 'अश्वग्रीव को कहना कि, जो राजा एक शेर को नहीं मार सका उस राजा से इनाम लेने को त्रिपृष्ठ तैयार नहीं है। वीर वीरों से इनाम लेते हैं, मामूली आदमियों से नहीं।' यह सुनकर अश्वग्रीव के दूत को क्रोध हो आया और वह बोला - 'उद्धत छोकरे! तुम्हें मालूम नहीं है कि, तुम किसके!...' दूत अपनी बात पूरी भी न कर पाया था कि, त्रिपृष्ठ के आदमियों ने उसे पीटपाटकर वहां से निकाल दिया। अश्वग्रीव को जब ये समाचार मिले तो वह अपनी आज लेकर आया। त्रिपृष्ठ भी फौज लेकर लड़ने निकला। थोड़ी देर तक फौजें लड़ती रही। फिर त्रिपृष्ठ ने कहलाया -- 'वृथा फौज का नाश किया जा रहा है। आओ तुम और मैं लड़कर लड़ाई का फैसला कर लें। अचंग्रीव ने यह बात मान ली। दोनों ने भयंकर युद्ध किया और अंत में अश्वग्रीव उसीके चक्र द्वारा . मारा गया। अथग्रीव को मरा जान सभी राजाओं ने आ आकर त्रिपृष्ठ को अपना स्वामी स्वीकार किया और भेटें दे देकर उसकी कृपा चाही। त्रिपृष्ठ ने सबको अभय किया। वहां से त्रिपृष्ठ ने जाकर भरतार्द्धको जीता कोटिशिला को क्षणमात्र में अपने सिरसे भी ऊंचा उठाकर रख दिया और सारी पृथ्वी को अपने पराक्रम से जीतकर पोतनपुर का रास्ता लिया। पोतनपुर में देवताओं ने और राजाओं ने उन्हें अर्द्धचक्री पद पर अभिषिक्त किया। पृथ्वी पर जो-जो अलभ्य रत्न थे। वे सभी त्रिपृष्ठ को मिले। भरतार्द्ध में जितने उत्तम गवैये थे वे भी त्रिपृष्ठ के राज्य में आ गये। एक रात को गवैये गा रहे थे, और त्रिपृष्ठ शय्या पर लेटा हुआ था। उसने अपने द्वारपाल को हुक्म दिया, जब मुझे नींद आ जाय तब गवैयों को छुट्टी दे देना। त्रिपृष्ठ सो गया मगर मधुर संगीत के रसिया द्वारपाल ने गवैयों को छुट्टी न दी। सबेरा हुआ। त्रिपृष्ठ जागा और उसने क्रोध से पूछा -- 'अभी तक गवैये क्यों गा रहे हैं?' द्वारपाल ने डरते हुए जवाब दिया -- 'प्रभो! मधुर गायन के लोभ से मैंने इन्हें छुट्टी न दी।' त्रिपृष्ठ को और भी अधिक : श्री महावीर चरित्र : 204 :
SR No.002231
Book TitleTirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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