________________
देवी थे। उनके परिवार में आर्यदत्त वगैरा दस गणधर, १६ हजार साधु, ३८ हजार साध्वियां, ३५० चौदह पूर्वधारी, १ हजार ४ सौ अवधिज्ञानी, साढ़े सात सौ मनःपर्यवज्ञानी, १ हजार केवली, ११ सौ वैक्रिय लब्धिवाले, छ सौ वाद लब्धि वाले, १ लाख ६४ हजार श्रावक और ३ लाख २७ हजार श्राविकाएँ थी।
अपना निर्वाण समय निकट जान भगवान सम्मेत शिखर पर गये। वहां तेतीस मुनियों के साथ अनशन ग्रहण कर, श्रावण शुक्ला ८ मी के दिन विशाखा नक्षत्र में वे मोक्ष गये। इंद्रादि देवों ने निर्वाण कल्याणक किया।
. उनकी कुल आयु १०० वर्ष की थी। उसमें से वे ३० वर्ष गृहस्थ पर्याय में और ७० वर्ष साधु पर्याय में रहे। श्री नेमिनाथ के निर्वाण पाने के बाद ८३ हजार ७ सौ ५० वर्ष बीते तब श्रीपार्श्वनाथ मोक्ष में गये। इनका शरीर प्रमाण ६ हाथ का था।
मुक्ति का उपाय एक सेठ साधु भगवंतो के अच्छे भक्त थे। पर उनको पीजरे में पोपट रखने का शौक था। उन्होंने पोपट को बोलना सिखाया था। उस घर में रहते रहते उसे जाति स्मरण ज्ञान भी हो गया था अब वह पीजरे के बंधन से मुक्त होकर जंगल में अणसण करना चाहता.था। एक दिन सेठ को उसने कहा आप साधुजी से मेरी मुक्ति कब होगी पूछना। सेठ ने साधु से पूछा साधु तो सुनते ही जैसे बेभान व्यक्ति सोता है वैसे सो गये। सेठ तो भय पाकर घर आ गये। पोपट के पूछने पर उन्होंने कहा क्या कहूँ मेरा इतना पूछने पर तो वे बेभान हो गये। पोपट समझ गया। दो दिन बाद वह पीजरे में बेभान पड़ा था। सेठ ने उसे मरा समझकर जंगल में छोड़ने का नौकर को कह दिया। नौकर ने जंगल में डाला। नौकर के जाते ही पोपट उड़कर चला गया। अपना आत्म साधन किया।
पारस जिनवर नाम को ध्यावे, उसके करम शीघ्र हट जोवे ।
सुवर्णभद्र पर भविजन आवे, वन्दन कर निर्मल थावे ॥
: श्री पार्श्वनाथ चरित्र : 192 :