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________________ २३. श्री पार्श्वनाथ चरित्र कमटे धरणेन्द्रे च, स्वोचितं कर्म कुर्वति । प्रभुस्तुल्यमनोवृत्तिः पार्थनाथः श्रियेऽस्तु वः ॥ भावार्थ - अपने स्वभाव के अनुसार कार्य करनेवाले कमठ और धरणेन्द्र पर समान भाव' रखने वाले पार्श्वनाथ प्रभु तुम्हारा कल्याण करें। प्रथम भव (मरुभूमि) : - जंबूद्वीप के भरत क्षेत्र में पोतनपुर नाम का नगर था। उसमें अरविंद नाम का राजा राज्य करता था। उसके परम श्रावक विश्वभूति नामक ब्राह्मण पुरोहित था। उसकी अनुद्धरा नाम की पत्नी के गर्भ से कमठ और मरुभूमि नाम के दो पुत्र उत्पन्न हुए। ... वे जब जवान हुए तब मातापिता ने उनका ब्याह करवा दिया। कमठ की स्त्री का नाम वरुणा था और मरुभूमि की स्त्री का नाम वसुंधरा। वसुंधरा दोनों में अधिक रूपवती थी। भाइयों में कमठ लंपट था और मरुभूमि सदाचारी। ___समय पर विश्वभूति और अनुद्धरा दोनों स्वर्गवासी हुए। कमठ संसाररत और क्रियाशील मनुष्य था। वह राजा की नौकरी करने लगा। संसारविमुख मरुभूमि धर्मध्यान में लीन हुआ और ब्रह्मचर्य पालन करता हुआ प्रायः पौषधशाला में रहने लगा। युवती वसुंधरा अपने यौवन को भोगविहीन जाते देख, मन ही मन दुःखी होती; परंतु अपने पति के धर्ममय जीवन में विघ्न डालने का यत्न न करती। इतना ही क्यों? वह भी यथासाध्य अपना समय 1. कमठ ने प्रभु को दु:ख दिया था और धरणेन्द्र ने प्रभु की दुःख से रक्षा की थी; परंतु भगवान ने न कमठ पर रोष किया था और न धरणेन्द्र पर प्रसन्नता दिखायी थी। दोनों पर उनके द्वेष और राग रहित समान भाव थे। : श्री तीर्थंकर चरित्र : 173 :
SR No.002231
Book TitleTirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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