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________________ कोई कमी न थी। सेठ का लड़का अनंगदेव वहां क्रीडा में निमग्न था। राजा के आने की बात जानकर उसने उनका स्वागत किया। राजा को यह जानकर परम संतोष हुआ कि मेरे राज में ऐसी सुखी और समृद्ध पुरुष हैं। दूसरे दिन राजा जब फिरने निकला तब उसने देखा कि लोग एक मूर्दे को ले जा रहे हैं। वह अनंगपाल का मुर्दा था। राजा को बड़ा खेद हुआ। जीवन की अस्थिरता ने उसको संसार से विरक्त कर दिया। कल शाम को जो परम स्वस्थ और सुख में निमग्न था आज शाम को उसका मुर्दा जा रहा है। यह भी कोई जीवन है? राजा ने प्रीतिमती से जन्मे हुए पद्मनाभ पुत्र को राज्य देकर दीक्षा ली। उसके साथ ही उसके भाइयों ने और पत्नी प्रीतिमती ने भी दीक्षा ले ली। छट्ठा भव : वे सभी तप कर कालधर्म को प्राप्त हुए और आरण नाम के ग्यारहवें देवलोक में इंद्र के सामानिक देव हुए। , सातवां भव : भरत क्षेत्र के हस्तिानापुर में श्रीषेण नाम का राजा था। उसकी श्रीमती नाम की रानी थी। इसके गर्भ से अपराजित का जीव च्यवकर उत्पन्न हुआ। उसका नाम शंख रखा गया। बड़ा होने पर वह बड़ा विद्वान और वीर हुआ। विमलबोध का जीव भी च्यवकर श्रीषेण राजा के मंत्री गुणनिधि के घर उत्पन्न हुआ। उसका नाम मतिप्रभ रखा गया। शंख और मतिप्रभ की आपस में बहुत मित्रता हो गयी। एक बार राजा श्रीषेण के राज में समरकेतु नामका डाकू लोगों को लूंटने और सताने लगा। प्रजा पुकार करने आयी। राजा उसको दंड देने के लिए जाने की तैयारी करने लगा। कुमार शंख ने पिता को आग्रहपूर्वक रोका और आप उसको दंड देने गया। डाकू को परास्त किया। वह कुमार की शरण में आया। कुमार ने : श्री नेमिनाथ चरित्र : 156 :
SR No.002231
Book TitleTirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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