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वचन याद आये कि, जो पुरुष तेरे हाथ से खड्ग छीनेगा वही तेरा जामाता होगा। मगर अब उसे वह कहां ढूंढता? वह अपने घर गया।
चित्रगति ने सुमित्र को इसकी बहन लाकर सौंप दी। सुमित्र ने उपकार माना। सुमित्र पहले ही संसार से उदास हो रहा था। इस घटना ने उसके मन से संसार की मोहमाया सर्वथा निकाल दी और उसने सुयशा मुनि के पास दीक्षा ले ली। चित्रगति अपने देश को चला गया।
सुमित्र मुनि अनेक बरसों तक विहार करते हुए मगध देश में आये और एक गांव के बाहर एकांत में कायोत्सर्ग करके रहे। सुमित्र का सौतेला भाई पद्म-जो सुमित्र के गद्दी बैठने पर देश छोड़कर चला गया था - भटकता हुआ वहां आ निकला। उसने सुमित्र मुनि को अकेले देखा। उसे विचार आया - यही पुरुष है जिसके कारण से मेरी माता भागी और बुरी हालत में दुःख झेलकर मरी, यही पुरुष है जिसके कारण मैं वन-वन और गांव-गांव, मारा-मारा फिर रहा हूं। आज मैं इसका बदला लूंगा। उसने धनुष पर बाण चढ़ाया और खींचकर मुनि की छाती में मारा। मुनि का ध्यान भंग हो गया। उन्होंने अपनी छाती में बाण और सामने अपना भाई देखा। मुनि को खयाल आया - आह! मैंने इसको राज्य न देकर इसका बड़ा अपकार किया था। उन्होंने कहना चाहा – 'भाई! मुझे क्षमा करो! मगर बोला न गया। बाण के घाव ने असर किया। वह जमीन पर गिर पड़े। दुष्ट पद्म खुश हुआ। मुनि ने भाई से और जगत के सभी जीवों से क्षमा मांगी और संथारा कर लिया। अहँत अहंत कहते हुए वे मरकर ब्रह्मलोक में इंद्र के सामानिक देव हुए। ...
पद्म वहां से भागा। अंधेरी रात में कहीं सर्प पर पैर पड़ गया। सर्प ने उसे काटा और वह मरकर सातवीं नरक में गया।
सुमित्र की मृत्यु के समाचार सुनकर चित्रगति को बड़ा खेद हुआ। वह यात्रा के लिए अपने पिता के साथ सिद्धायतन पर गया। उस समय और भी अनेक विद्याधर वहां आये हुए थे। अनंगसिंह भी अपनी पुत्री रत्नावती के साथ वहां आया था। चित्रगति जब प्रभु की पूजा स्तुति कर चुका तब देवता
: श्री तीर्थंकर चरित्र : 149 :