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________________ फिर सुमित्र और उसके पिता ने अनेक प्रकार के कातर वचनों में कृतज्ञता प्रकट की और कुछ दिन अपने यहां रहने की उसने विनती की। चित्रगति ठहरने में अपने को असमर्थ बता सुमित्र को अपना मित्र बना कर चला गया। एक दिन उद्यान में सुयशा नामक केवली पधारें। राजा परिवार सहित उनको वंदना करने गये। वंदना करके राजा यथास्थान बैठ गये। फिर हाथ जोड़ उनसे पूछा – 'हे भगवन्! मेरी दूसरी स्त्री भद्रा कहां पर गयी?' केवली बोले – 'वह यहां से भागकर वन में गयी पर चोरों ने उसके आभूषण लूट लिये और उसे एक भील को सौंप दिया। भीलने उसे एक वणिक को बेच दिया। वह रास्ते में जा रही थी कि जंगल में आंग से जल गयी और मरकर प्रथम नरक में गयी है। यह उसके बुरे कर्मों का फल है।' राजा सुग्रीव को वैराग्य हो गया। उसने उसी समय सुमित्र को राज्य सौंपकर दीक्षा ले ली और केवली के साथ विहार किया। सुमित्र अपने स्थान को गया। सुमित्र की बहन कलिंग देश के राजा के साथ ब्याही गयी थी। उसको अनंगसिंह राजा का पुत्र, रत्नावती का माई कमल, हरकर ले गया। इस समाचार से सुमित्र बहुत क्रुद्ध हुआ और वह युद्ध की तैयारी करने लगा। यह खबर एक विद्याधर के मुख से चित्रगति ने सनी। तब चित्रगति ने उसीके साथ यह संदेशा सुमित्र के पास भेजा – 'हे मित्र! आप कष्ट न करें। मैं थोड़े ही दिनों में आपकी बहन को छुड़ा लाऊंगा।' फिर चित्रगति अपनी सेना लेकर शिवपुर गया। चित्रगति और कमल में घोर युद्ध होने लगा। युद्ध में कमल हार गया, तब उसका पिता अनंगसिंह आया और उसने चित्रगति को ललकारा – 'छोकरे! भाग जा! नहीं तो मेरा यह खड्ग अभी तेरा सिर धड़ से जुदा कर देगा।' चित्रगति ने हंसकर विद्याबल से चारों तरफ अंधेरा कर दिया; अनंगसिंह के पास खड्ग छिन लिया और वह कुछ न कर सका। चित्रगति फिर सुमित्र की बहन को लेकर वहां से चला गया। थोड़ी देरे के बाद जब अंधेरा मिटा तब उसने चारों तरफ देखा तो मालूम हुआ कि चित्रगति तो चला गया है, वह पछताने लगा। फिर उसे मुनि के : श्री नेमिनाथ चरित्र : 148 :
SR No.002231
Book TitleTirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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