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________________ दूसरा भव :- . अनशन सहित आयुपूर्ण धनकुमार व धनवती का जीव सौधर्म देवलोक में देव हुए। तीसरा भव : धनकुमार का जीव वहां से च्यवकर वैताढ्य पर्वत की उत्तर श्रेणी में सुरतेज नामक नगर के खेचर राजा श्रीसूर की रानी विद्युन्मति के गर्भ से जन्मा। उसका नाम चित्रगति रखा गया। धनवती का जीव उसी पर्वत की दक्षिण श्रेणी में शिवमंदिर नगर के राजा अनंगसिंह की रानी शशिप्रभा के गर्भ से पुत्री रूप में जन्मी। उसका नाम रत्नवती रखा गया। -- चक्रपुर नगर के राजा सुग्रीव की दो रानियाँ थी। यशस्वी और भद्रा। यशस्वी का पुत्र सुमित्र था और भद्रा का पद्मकुमार। सुमित्रकुमार धर्मात्मा और सदाचारी था। पद्मकुमार मिथ्यात्वी, अहंकारी और व्यसनी था। एक दिन दुष्टा भद्रा रानी ने, यह विचार कर कि यदि सुमित्र जीता रहेगा तो मेरे पुत्र पद्म को राज्य नहीं मिलेगा, सुमित्र को जहर दे दिया। विष के पीते ही सुमिंत्र पृथ्वी पर मूर्छित होकर गिर पड़ा। जहर सारे शरीर में व्याप्त हो गया। जंब यह खबर सुग्रीव राजा को मिली तो वे मंत्री सहित वहां आये। अनेक तरह के उपचार किये पर विष का असर कम न हुआ। राजा बड़े दुःखी हुए। सारे नगर में भद्रा की अपकीर्ति फैल गयी। वह कहीं चुपचाप भाग गयी। ... चित्रगति विद्याधर विमान में बैठ आकाश में फिरने निकला था। घूमते-घूमते वह उसी नगर में आ निकला। कोलाहल सुनकर उसने विमान नीचे उतारा। पूछने पर लोगों ने उसे विष की बात सुनायी। उसने जल मंत्रकर सुमित्र पर छिड़का। राजकुमार सचेत हो गया और आश्चर्य से इधर उधर देखने लगा। राजा ने कहा – 'हे पुत्र! तेरी अपर माता ने (सोतेली मां . ने) तुझको विष दिया था। इन महापुरुष ने तुझको जीवित दान दिया है।' : श्री तीर्थंकर चरित्र : 147 :
SR No.002231
Book TitleTirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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