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________________ बने हुए सुमित्र ने उस पर फूलों की वृष्टि की। अनंगसिंह ने चित्रगति का वहां पूरा परिचय पाया। • अपने देश जाकर अनंगसिंह ने चित्रगति के पिता श्रीसूर चक्रवर्ती को विवाह का संदेशा कहलाया। श्रीसूर ने संदेशा स्वीकारा और चित्रगति के साथ रत्नावली का विवाह कर दिया। वह सुख से दिन बिताने लगे। __श्रीसूर राजा ने चित्रगति को राज्य देकर दीक्षा ले ली। चित्रगति न्याय से राज्य करने लगा। एक बार उसके आधीन एक राजा मर गया। उसके दो पुत्र थे। वे दोनों राज्य के लिए लड़ने लगे। चित्रगति ने उनको समझाकर शांत किया। कुछ दिन के बाद उसने सुना कि दोनों भाई एक दिन लड़कर मर गये हैं। इस समाचार से उसे संसार से वैराग्य हो गया और उसने पुरंदर नामक पुत्र को राज्य देकर, पत्नी रत्नवती और अनुज मनोगति तथा चपलगति के साथ दमधर मुनि के पास दीक्षा ले ली।' चौथा भव : चिर काल तक तप कर चित्रगति महेन्द्र देवलोक में परमर्द्धिक देवता हुआ। उसके दोनों भाई और उसकी पत्नी भी उसी देवलोक में देवता हुए। पांचवां भव : पूर्व विदेह के पद्म नामक विजय में सिंहपुर नाम का अपराजित शहर था। उसमें हरिनंदी राजा एवं उसकी प्रियदर्शना रानी थी। चित्रगति का जीव देवलोक से च्यवकर प्रियदर्शना के गर्भ से जन्मा। उसका नाम अपराजित रखा गया। ___ जब वह बड़ा हुआ तब, विमलबोध नामक मंत्री-पुत्र के साथ उसकी मित्रता हो गयी। एक दिन दोनों मित्र घोड़ों पर सवार होकर फिरने को निकले। घोड़े बेकाबू हो गये और भागे हुए एक जंगल में जाकर ठहरे। वे घोड़ों से उतरे और जंगल की शोभा देखने लगे। उसी समय एक पुरुष 'बचाओ! बचाओ!' पुकारता हुआ आकर अपराजित के चरणों में गिर पड़ा। अपराजित ने उसे अभय दिया। विमल बोध बोला – 'कुमार! अनजाने : श्री नेमिनाथ चरित्र : 150 :
SR No.002231
Book TitleTirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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