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________________ राजा विजय नृप के चरणों में आ नमे। इससे माता-पिता ने पुत्र का नाम नमिनाथ रखा। प्रभु अनुक्रम से युवा हुए। अनेक राजकन्याओं के साथ माता-पिता के आग्रह से ब्याह किया। ढाई हजार वर्ष के बाद राजा हुए और पांच हजार वर्ष तक राज्य किया। फिर लोकांतिक देवों की विनती से प्रभु ने वरसीदान दिया, सुप्रभ पुत्र को राज्य सौंपा और सहसाम्र वन में जाकर अषाढ कृष्ण ६ के दिन अश्चिनी नक्षत्र में दीक्षा धारण की। इंद्रादि देवों ने दीक्षाकल्याणक मनाया। दूसरे दिन प्रभु ने वीरपुर के राजा दत्त के घर पारणा किया। प्रभु वहां से विहार कर पुनः नौ मास के बाद उसी उद्यान में आये और बोरसली वृक्ष के नीचे कायोत्सर्ग धारण कर मार्गशीर्ष वदि ११ के दिन अश्विनी नक्षत्र में केवलज्ञान पाये। ____नमि प्रभु के तीर्थ में भृकुटि नामक यक्ष और गांधारी नामक शासन देवी थी। उनका संघ इस प्रकार था - १७ गणधर, २० हजार साधु, ४१ हजार साध्वियाँ, ४५० चौदह पूर्वधारी, १ हजार छ: सौ अवधिज्ञानी, १२ सौ ५० मनः पर्यवज्ञानी, १६०० केवली, ५ हजार वैक्रिय लब्धिवाले, १ हजार वाद लब्धिवाले, १ लाख ७० हजार श्रावक और ३ लाख ४८ हजार प्राविकाएँ थी। विहार करते हुए अपना मोक्षकाल समीप जान प्रभु सम्मेद शिखर पर आये। वहां एक हजार मुनियों के साथ एक मास का अनशन धारण कर वैशाख वदि १० के दिन अश्विनी नक्षत्र में मोक्ष गये। इंद्रादि ने निर्वाण कल्याणक मनाया। इनकी आयु कुल १० हजार वर्ष की. थी और शरीरऊंचाई १५ धनुष थी। मुनिसुव्रत स्वामी के निर्वाण जाने के छः लाख वर्ष बाद नमिनाथजी मोक्ष में गये। इसके शासन काल में हरिषेण और जय नामक चक्रवर्ती हुए हैं। जमि जिणंद के चरण कमल में, वंदन करते भावधर दिल में । कूट मित्रधर नाम है इसका, गुण गावू सिद्ध भये जिनका ॥ : श्री नमिनाथ चरित्र : 144 :
SR No.002231
Book TitleTirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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