SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 156
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ . २१. श्री नमिनाथ चरित्र लुटतो नमतां मूर्ध्नि निर्मलीकारकारणम् । वारिप्लवा इव नमः पान्तु पाद-नखांशवः ॥ भावार्थ - नमस्कार करने वालों के मस्तक पर फड़कती हुई और जल के प्रवाह की तरह निर्मल करने में कारणभूत, ऐसी श्रीनमिनाथ प्रभु के चरणों के नख की किरणें तुम्हारा रक्षण करें। प्रथम भव : जंबूद्वीप के पश्चिम महाविदेह में कौशांबी नाम की नगरी थी। उसमें सिद्धार्थ राजा राज्य करता था। किसी कारण से उसको संसार से वैराग्य हुआ और उसने सुदर्शन मुनि के पास दीक्षा ली एवं बीस स्थानक की आराधना से तीर्थंकर गौत्र बांधा। दूसरा भव :- अंत में शुभध्यान पूर्वक आयु पूर्ण कर वह अपराजित देवलोक में गया। . तीसरा. भव : ___ वहां से च्यवकर सिद्धार्थ का जीव मिथिला नगरी के राजा विजय की रानी वप्रा के गर्भ में, आश्विन सुदि १५ के दिन अश्विनी नक्षत्र में आया। इंद्रादि देवों ने च्यवनकल्याणक मनाया। ___गर्भ का समय पूरा होने पर वप्रा देवी ने, श्रावण वदि ८ के दिन अश्विनी नक्षत्र में नीलकमल लक्षणयुक्त, स्वर्णवर्णी पुत्र को जन्म दिया। छप्पन दिक्कुमारी और इंद्रादि देवों ने जन्मकल्याणक मनाया। जिस समय प्रभु गर्भ में थे, उस समय मिथिला को शत्रुओं ने घेर लिया था, उन्हें देखने के लिए वप्रा देवी महल की छत पर गयी। उन्हें देखकर गर्भ के प्रभाव से शत्रु : श्री तीर्थंकर चरित्र : 143 :
SR No.002231
Book TitleTirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy