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२२. श्री नेमिनाथ चरित्र
यदुवंश-समुद्रेन्दुः, कर्मक्षय-हुताशनः ।
अरिष्टनेमिभगवान्, भूयादोरिष्टनाशनः ॥
भावार्थ - यदुवंश रूपी समुद्र में चंद्र तथा कर्मरूपी वन को जलाने में अग्नि समान श्री अरिष्टनेमि भगवान तुम्हारे अमंगल का नाश करने
वाले हो।
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प्रथम भव :. जंबूद्वीप के भरत क्षेत्र में अचलपुर नामक नगर था। उसका राजा विक्रमधन था। उसको धारिणी नाम की रानी थी। रानी ने एक रात्रि में स्वप्न देखा कि एक पुरुष ने फलों वाले आम्र वृक्ष को हाथ में लेकर कहा कि, यह वृक्ष तुम्हारे आंगन में रोपा जाता है। जैसे-जैसे समय बीतेगा वैसे-वैसे वह अधिक फलवाला होगा और भिन्न-भिन्न स्थानों पर नौ जगह रोपा जायगा। सवेरे शय्या छोड़कर रानी उठी और नित्य कृत्यों से निवृत्त हो उसने स्वप्न का फल राजा से पूछा। राजा ने शीघ्र ही स्वप्ननिमित्तिक को बुलाकर स्वप्न का फल कहने की आज्ञा दी। उसने कहा - 'हे राजन! तुम्हारे अधिक गुणवान पुत्र होगा। और नौ बार वृक्ष रोपा जायगा इसका फल केवली गम्य है।'
यह सुनकर राजा और रानी हर्षित हुए। समय पूर्ण होने पर रानी ने पुत्र रत्न को जन्म दिया। पुत्र का नाम 'धन' रखा गया। शिशु काल को त्याग कर उसने यौवनावस्था में पदापर्ण किया।
कुसुमपुर नगर में सिंह नामक राजा की विमला रानी के धनवती नामकी कन्या थी।
एक दिन वसंत ऋतु में युवती धनवती सखियों के साथ, उद्यान की शोभा देखने को गयी। उस उद्यान में घूमते हुए राजकुमारी ने, अशोक वृक्ष
: श्री तीर्थंकर चरित्र : 145 :