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करके इस पक्षी को छोड़िए और मुझे बचाईए। मैं ताजा मांस के सिवा किसी तरह से भी जिंदा नहीं रह सकता हूं।'
- मेघरथ ने कहा – 'हे बाज! अगर ऐसा ही है तो इस कबूतर के बराबर मैं अपने शरीर का मांस तुझे देता हूं। तूं खा और इस कबूतर को छोड़कर अपनी जगह जा।'
बाज ने यह बात कबूल की। राजा ने छुरी और तराजू मंगवाये। एक पलड़े में कबूतर को रखा और दूसरे में अपने शरीर का मांस काटकर रखा। राजा ने अपने शरीर का बहुत सा मांस काटकर रख दिया तो. भी वह कबूतर के बराबर न हुआ। तब राजा खुद उसके बराबर तुलने को तैयार हुआ। चारों तरफ हाहाकार मच गया। कुटुंबी लोग जोर-जोर से रोने लगे। मंत्री लोग आंखों में आंसू भरकर समझाने लगे – 'महाराज! लाखों के पालनेवाले आप, एक तुच्छ कबूतर को बचाने के लिए प्राण त्याग ने को तैयार हुए हैं, यह क्या उचित है? यह करोड़ों मनुष्यों की बस्ती आपके आधार पर है; आपका कुटुंब परिवार आपके आधार पर है उनकी रक्षा न कर क्या आप एक कबूतर को बचाने के लिए जान गंवायेंगे? महारानियाँ - आपकी पत्नीयां, आपके शरीर छोड़ते ही प्राण दे देंगी, उनकी मौत अपने सिरपर लेकर भी, एक पक्षी को बचाने के लिए मनुष्यनाश का पाप सिर पर लेकर भी, क्या आप इस कबूतर को बचायेंगे? और राजधर्म के अनुसार दुष्ट बाज को दंड न देकर, उसकी भूख बुझाने के लिए अपना शरीर देंगे? प्रभो! आप इस न्याय-असंगत काम से हाथ उठाईए और अपने शरीर की रक्षा कीजिए। हमें तो यह पक्षी भी छलपूर्ण मालूम होता है। संभव है यह कोई देव या राक्षस हो।'
राजा मेघरथ ने गंभीर वाणी में उत्तर दिया – 'मंत्रीजी, आप जो कुछ कहते हैं सो ठीक कहते हैं। मेरे राज्य की, मेरे कुटुंब की और मेरे शरीर की भलाई की एवं राजधर्म की या राजन्याय की दृष्टि से आपका कहना बिलकुल ठीक जान पड़ता है। मगर इस कथन में धर्मन्याय का अभाव है। राजा प्रजा का रक्षक है। प्रजा की रक्षा करना और दुर्बल को
: श्री शांतिनाथ चरित्र : 124 :